Tuesday, March 19, 2013

दिल्ली से आगरा कोच में


पीछे से आती तेज़ ठहाकों की आवाज़ !
मै थी कि गहरी नींद में डूबी जा रही थी 
जैसे मुझे कितने दिनों बाद ये चैन की नींद 
नसीब हुई हो 
क्या रिश्ता था 
नींद और ठहाकों में ? 
शायद ये कवि -ह्रदय  की  निश्छल आवाज थी 
जो हौले हौले थपकियाँ दे मुझे 
सुला रही थी 
बिना किसी  शिकवे शिकायत ! .....

मै नींद की घाटियों में उतरती जा रही थी .....
और 
सात अजनबी भाषाओँ को लिए बस सरपट 
सड़कों पर दौड़ रही थी .........

                     ( दिल्ली से आगरा कोच में )

Pichhe se aati tez thahakon ki awaj / aur mai gahri nind me dubi ja rahi thi / jaise mujhe kitne dino baad ye chain ki nind nsib hui ho / kya rishta tha nind aur thahakon me / shayd ye kavi hriday ki nishchhl awaz thi / jo houle houle thapkiyan de mujhe sula rahi thi / bina kisi shikve shikayt ke / ../ mai nind ki ghatiypon me utarti ja rahi thi ../ aur saat aznbi bhashaon ko liye bs sarpt sadkon pr doud rahi thi........

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