Thursday, October 25, 2012

तेरी याद स्मृति के झरोखों से 
छन छन कर आती रही
मेरी लेखनी बेजान पन्नो को रंगती रही 
किसी ने कविता तो किसी ने कहानी समझी 
पर 
मेरी जिन्दगी में जो तेरी यादों के घुन लग गए 
उसे चुनने वाला कोई नहीं
मेरा अंतर रोता रहा 
मेरी उहा तडपती रही 
पर लोगों ने कविता को 'ट्रेजिक' जाना 
कहानी को दुखमय 
किसी ने मुझसे कुछ पूछा नहीं 
जिसने अंगारे चुन चुन कर अपने 
तप्त अंतर को और भी 
आतप्त किया
जीवन में वेदना का श्रृंगार किया.....
  

सागर  में आगि बिजली आसमान में 
बेचैनी कत ' जे अछि हमर प्राण में 
दिन एहनो आयल हमर जिनगी में
बुझलों अप्पन मिलल छल आन मे 
की देखि रंग ढंग जिनगीक हुनक 
रूप बदलैत छन छन आसमान  मे
नीव पडल नोरक   धार  पर जकर
खसैत रहल सदिखन महलक सान मे
के पुछि आओत उपरवाला सं जाय 
बना'  कें मेटेनाय   कोन   विधान मे 
ओ संग संग हमर चलि तं  रहल छथि 
मोन  भटकल छन्हि कोनो ध्यान मे      
गीत शेफाली क दिलक आगि थीक 
बुझि नहि पवैत छथि नशाक तान में !!!

Saturday, October 13, 2012

इन आँखों में नींद नहीं 
सजन 
तुम पलकें बंद कर दो 
युग युग से है थकी निगाहें 
जीवन की सांसे जीती 
उन्मीलित नैनों में सपनो के मोती चुनती
इन अधरों में है प्यास भरी
अधरों को अपने रख दो.
पलकें जब भी बंद करती हूँ
छवि तुम्हारी आ जाती है
देह गेह में मधु दर्द भर
मुझको पास बुलाती है
इन साँसों में है धूप भरी
सजन तुम छाहर कर दो 
( ठहरे हुए पल से )

Wednesday, October 10, 2012

एकटा संस्मरण एकटा प्रश्न\


एकटा संस्मरण एकटा प्रश्न
डॉ. शेफालिका वर्मा

एक दिन अखबार में पढने छलों मृदुला गर्ग केर एकटा आलेख ' सेक्युलर के नाम पर सम्मान का धंधा '....ओ ते लिखलनि ..आप हमारी संस्था को दास हज़ार रुपये दो,मै आपको 'फ़लाने' सम्मान से सम्मानित करूँगा..'...ओ चमत्कृत भ गेल छलीह .केओ ते हमरा सम्मान योग्य बुझ्लनी ..पाछा जे ओ दस हज़ार क गप सामने आयल...
हमरो मोन पड़ी आयल . स्थायी रूप स हम दिल्ली आयल छलों स्यात २००९ क मार्च में.. ....२ .३ मासक उपरांत एकटा बड पैघ इंटर नेशनल संसथान दिसि से हमरा बड़का लिफाफा भेटल . रंग विरंगी बेसकीमती कागज़ में बड़का बड़का लोगक फोटो छपल , पुरस्कार लैत, दैत...भव्य मंच, सजावट....अंग्रेजी में एकटा पत्र हमर नामे छपल छल ..जे साहित्य आ समाजक सेवा लेल हम अहाँ के सम्मानित करे चाहैत छी..अहाँ देखि लेब जे हम कतेक गोटा के सम्मानित केने छी ,सभक फोटो सेहो पठा रहल छी ..सांचे ओहि में पूरा प्रोग्राम केर फोटो छल .सबटा आर्ट पेपर पर .....हमर जी थरथरा गेल ई कोन संस्था थीक जे दिल्ली अबितहि सम्मानित करे लेल अगुआय्ल अछ ...रोमांचित भ उठलों ..फेर सोच्लों ,अरे एतेक भाषाक ' हूज हु' में नाम निकलल अछ ओहि से खोजी नेने होयत.लागले फोन आयल अहाँ के हमर लिफ़ाफ़ भेटल ..आमंत्रण भेटल.हम सब अहाँ के सम्मानित कर चाहैत छी .......हम सोचैत सोचैत ठीक छै बाजि देलों..सब टा गप्प अन्ग्रेजिये में भेल..हमर नाम के , किएक प्रस्तावित केने हेताह , दूर दूर धरि अहि युग में केओ नै बुझा पडल..देखा पडल .....१ लाख रुपैया मामूली गप नै थीक जे केकरो करेज होयत केओ आन के दय दी ..सभक जी अपना अपना ले ओनाय्ल अछ......बड देर धरि सोचैत रहलों ,अपन आन के गुनैत रहलों ..के भ सकैत अछ...ई कोन संस्था एतेक ठस्सा वाला थीक एतेक पाई वाला..!
तखन हम अपन जेठ बेटा राजीव के फोन लगेलों जे दिल्ली विश्व विद्यालय में प्रोफेसर अछ आ आय ३० बरिस से दिल्लीमे अछ --ओकरा जरुर बुझल हेतैक....हम सब बात ओकरा पढ़ी के सुना देलों....ओ ख़ुशी से गद गद भ गेल..मम्मी ,एहिठाम अबिते अहाँ मैथिली भोजपुरीक सेमिनार में भाग लेलों...आब ई ...बहुत ख़ुशी क गप , हम बाजलों ..राजू मैथिली भोजपुरी में ते सब अप्पन छल एहि में ते देसी विदेसी भरल अछ...हमर नाम के कहलक ..ओ एतेक खुश छल जे --छोड़ू ई सब गप भगवन जे दै छथिन ख़ुशी ख़ुशी ग्रहण करु....हम आश्वस्त भ गेलों.....अपन सम्मान दुनिया में केकरा ख़राब लगैत छैक....
दस दिन बाद क बात छी, हम बिसरी गेलों , दिल्ली में नव नव किनल घर द्वार के ठीक करे लगलों .....अचक्के एक दिन फोन आयल.. आर यु डॉ. शेफालिका ...हम यस बाजलों...अहांके मोन ऐछ ने काल्हिये प्रोग्रम्म थीक. ..हम चोंकि उठलों ..हं हं किएक नै...मोन अछि...
तं काल्हि ५ बजे साँझ से प्रोग्राम होयत...अहाँ एतेक हज़ार रुपैया एकटा लिफ़ाफ़ में नेने आयब, प्रोग्राम से एक घंटा पहिने.......

हम अव्चंक भ गेलों .कहियो ई सब जानि बुझि तखन ने , रूपया किएक ??? ई नियम थीक एहि संस्थाक दीप तर अन्हार , वो बाला मधुर स्वरे बजलीह एहि में कोन बुराई, अहाँ के सम्मानक संग ट्को भेटत ..,,,,,कोनो लोस नै अछ खाली गेने गेन...हम सपाट स्वरे ब्ज्लों हमरा टका द क सम्मान नै चाही...
तखन मोन में घुमड़ लागल कतेको प्रश्न जाहि में एकटा प्रश्न जरैत बुझैत आगि जकां ठाढ़ छल ..की एहनो होयत छैक ....