Monday, December 31, 2012

HAPPY NEW YEAR

नव वर्ष मंगलमय हो .......
कुछ आंसू कुछ मुस्कान 
कुछ स्थूल कुछ सूक्ष्म 
कुछ स्पर्श कुछ गंध 
कुछ भाव कुछ अनुभाव कुछ प्यार कुछ तकरार 
अपनों का स्नेह अपार ............
ये ही तो सौगातें हैं विगत वर्ष की ...........
आगत वर्ष में मै इन सब का ही अभिनन्दन करती हूँ
साथ ही देश औ समाज को आप नयी दिशा दें 
कोई कलंक न लगने दें 
नवल विहान दे ये कामना ही तो करती हूँ
आप देश की तकदीर बदल दें ....

HAPPY NEW YEAR

GOD GIVE ME STRENGTH! In 2013----I thank all the special frds who touched my heart with their love n care & made my life more meaningful, more thoughtful.Wish you an everlasting glow of health n happiness in this year n ever.
Encourage near and dear ones to aim high in 2013.Happy New Year

Friday, December 28, 2012

बुझ गयी ज़िन्दगी

बुझ गयी ज़िन्दगी एक 
बुझती रही ऐसे ही ज़िन्दगी कितनी 
तुम न बुझने देना इनके एहसासों को 
रावण के देश में भटकती सीता की आत्माओं को ....

बेटी तुझे माँ का सलाम ! 

Bujh gayi zindagi ek 
Bujhti rahi aise hi zindagi kitni 
Tum na bujhne dena inke ehsason ko 
Ravan ke desh me bhatakti sita ki atmaon ko ..

BETI TUJHE MA KA SALAM

Monday, December 24, 2012

रुद्रानी शिवानी है....

रो रही धरा रोता ये आकाश है , मानवता का कैसा ये ह्रास है 
चुप रह कर हमने सज़ा बहुत ही पाई ,अब न रहेगी चुप ये भारत की नारी 
सूरज पर भी कालिख पोता चाँद पर सच ही आज लगा कलंक है 
क्या जानवर से भी गए बीते घूमता बर्बर निशंक है 
किसी माँ के गर्भ से जन्म लिया होगा 
किसी बहन के साथ खेला भी होगा
किन्तु आग लगी तन में अपनी ही माँ बहनों को शर्मसार किया
तुम सब ने अपनी ही माँ बहनों के साथ ऐसा दुष्कर्म किया 
यह आदमी का काम नही इन खूंखार भेडियों को दूर करने हमने ठानी है 
हम फूल नही चिंगारी हैं हम रुद्रानी शिवानी है

Saturday, December 22, 2012

MAA TUJHHE SALAAM

MAA TUJHHE SALAAM
We, Rajiv=Jaya, Bhawna=Prakash, Vandana=Kaushlendra, Suparna=Manoj, Sanjeev=Shabnam, Taruna=Vikas ; Suprabha-Prasoon, Arushi-Aditi, Ankita-Anupama, Sanskriti-Abhishri, Deepankar, Satwik salute our mother/ grandmother Dr. Shefalika Verma [ Rajni]who was awarded Sahitya Akademi Award 2012 on 20.12.2012, Thursday for her Autobiography entitled Kist Kist Jiwan. Through her life journey full of ups and downs, we learnt the values of love, sacrifice, struggle, patience, toleration, relationship, togetherness, activism, leadership, importance of art, literature, culture and many more. She is rightly known as the Mahadevi of Maithili and Kavya Vinodini. She was born on 9th August, 1943 and at the age of 16, got married to Lalan Kumar Verma popularly known as Prince of Dumra, Saharsa [ son of Kadambari and Surya Narain], a student of Patna Science College and later on a successful lawyer at Saharsa District Court and Patna High Court. She has three devars- Mohan, Sunil and Anil and four nanad – Meena, Renu, Rambha and Indira. Daughter of Annapurna and Brajeshwar, She has six sisters – Deepmalika=Amar, Madhulika=Shankar, Mrinalika= Bijay, Chayanika= Hridaya, Sarika= Pankaj and Niharika= Baidyanath and three brothers- Krishna= Chanda, Sharad=Anu and Asim=Samita. She herself is blessed with two sons and four daughters. She is proficient in many languages and her English poem My Village is taught at school level in England. She has championed the cause of women, her anti-dowry stand is laudable. She is a true representative of women empowerment. She started writing in Maithili in 1961 and received Sahitya Akademi Award in 2012. She has proved herself to be the proud daughter of the land of Mithila. And we feel proud to be her children and grandchildren.
\DR. RAJIV KUMAR VERMA 

किस्त-किस्त जीवन


Manoj Kumar Jha
June 10
मित्रों, बचपन से ही मुझे पढने में मन नहीं लगता था, इसका मतलब ये नहीं कि मैं पढाई में कमजोर था, मतलब ये कि आज तक मैंने किसी किताब को आद्योपांत नहीं पढ़ा. चाहे वो पाठ्य पुस्तक हो, साहित्यिक उपन्यास हो या कोई धार्मिक पुस्तक. किन्तु मैंने मैथिली की महादेवी द्वारा रचित "किस्त-किस्त जीवन" को पूरा यानि आद्योपांत पढ़ लिया. लगातार नहीं, किस्त-किस्त में. इसके दो कारण हैं- (१) यह पुस्तक स्वयं महादेवी ने अपने हाथ से हमें उस समय भेंट किया था जब वो स्वल्प समय के लिए मेरे गरीबखाने में आयी थी, इसलिए इस पुस्तक से मेरा दिल ना नाता हो गया (२) इस पुस्तक से उस महादेवी के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत को जानने का मौका मिला जिसे मैंने बिना देखे-जाने अपना आदर्श मान लिया था. आज इस पुस्तक को पढने के बाद मेरी नजर में उनका कद और भी बढ़ गया है, यह पुस्तक मेरे लिए रामायण, गीता, वेद-उपनिषद, बाइबिल, कुरान-शरीफ या गुरु ग्रन्थ साहिब की तरह पवित्र है. मैं इसके दो-चार पेज रोज पढता हूँ और अपने आप को बडभागी मानता हूँ. ई पुस्तक हम्मर शक्ति रहत, दुर्बलता नहि, —

साहित्य अकादेमी पुरस्कार- 2012


साहित्य अकादेमी पुरस्कार- 2012

शेफालिका वर्मा
साहित्य अकादेमी पुरस्कार- 2012 केर घोषणा भ' गेल अछि। मैथिली मे  शेफालिका वर्मा के हुनक आत्मकथा- क़िस्त क़िस्त जीवन लेल अहि बेरक साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटल छन्हि। मैथिली मे साहित्य अकादेमी केर युवा पुरस्कार अरुणाभ सौरभ के हुनक काव्य संकलन- एतबे टा नहि लेल देल गेल  छन्हि।
अरुणाभ मैथिली मंडन केर सतत सहयोगी रहल छथि। हुनक अहि संकलन केर दू गोट कविता किछु दिन पहिने अहि ब्लॉग पर प्रस्तुत  कयल गेल छल। हनक कविता पढ़बा लेल क्लिक करू-अरुणाभ सौरभ केर दू गोट कविता
शेफालिका आ अरुणाभ के बहुत बधाई आ अशेष शुभकामना।



Monday, December 17, 2012

मेरे घर का पता


मुझसे 
मेरे घर का पता पूछते हो ?
मोहब्बत  जहाँ लिखा हो उस  
घर में हम रहते हैं 
खुशबू  हो इंसानियत की जहाँ 
उस दिल में हम 
बसते हैं..........

Mujhse mere fgar ka pata puchhte ho 
Mohabbat jahan likha ho us 
Ghar me hm rahte hain 
Khushboo ho insaniyat ki jahan
us dil me hm baste hain...

Thursday, December 13, 2012

परिभाषा प्रेम की ( कामायिनी -उर्वशी )


परिभाषा प्रेम की 
( कामायिनी -उर्वशी )
                डॉ. शेफालिका वर्मा ///..........
 तुम पुरुरवा हो /
देह काम में डूबे से /
मै श्रधा हूँ
जगती  में आयी भूली सी /
तुमने माना
देह प्रेम कि जन्म भूमि है /
मैंने समझा
प्रेम ह्रदय  कि विस्तृत 
जलनिधि  है /
तुम
उर्वशी को भर बाहों  में
पाठ  प्रेम का पढाते /
मै मनु को ले
ह्रदय-गुहा में
दिखलाती जीवन की राहें !
/उस  अरूप के रूप का
तुम देह-गंध  पीते
/हम मानस के शतदल  में
सौरभ  की साँसे  जीते /
तुम में तृषा जीने की पीने की /
मै खेलती  खेल
मन से मन में खोने की /
पुरुरवा !
तुमने पायी उर्वशी
भोली भाली अल्हड  सी / 
बंधनहीन ,सीमाहीन आ समायी
उन्मुक्त प्रतिमा मंद समीरण पर
मदमाती सी !!/
परिभाषा  प्रेम की है विचित्र ....../
देश काल वय विस्मृत  कर
मानव जीवन
बन जाता बस एक चित्र /
अतृप्ति की प्यास लिए
दौडती  वह जलधारा
/सारे रिश्ते ,सारे बंधन
बन जाते एक कारा /
क्या होता कवि यदि चैन तुम्हारा
सुकन्या की आँखें हर लेती /
आरती की दीपशिखा  भुजबंधों में
तेरे सिमट  पाती ??
तब होती क्या परिभाषा  प्रेम की
देह प्रेम की जन्म भूमि बन
मृणाल भुजाओं में बंध पाती...??
देह भुजाओं  में निर्बंध  बंध जाती ..???

Tuesday, December 11, 2012

12-12-12.

We must celebrate this day becoz 13-13-13....will never come ..We r lucky 2 c such dates like 7-7-7, 8-8-8, 9-9-9-,10-10-10, 11-11-11- n now it is 12-12-12... tTHIS IS D END OF AN ERA...HAVE A SMILEE DAY, FLOWERY DAY 2 U ALL....

Friday, December 7, 2012

प्रश्न अनुत्तरित......


‎'तुम बेटी हो
सबों की सेवा के लिए जन्म हुआ तुम्हारा
घर के काम काज सीखो
पढो लिखो , नौकरी करो ...नौकरी करनेवाली
बेटी का ब्याह
हाथो हाथ हो जाता है ...
क़िस्त क़िस्त में दहेज़ जुटाती है
सास ससुर की छाती जुडाती है
पति के मन के अनुरूप चलना
अंत में स्वर्ग पाना ............'
......और इसीलिए
भोर से रात तक ,जन्म से मरण तक
जीती हूँ तुम्हारे लिए
गृहस्थी की गाड़ी में बैल की तरह जुती हूँ तुम्हारे लिए।।
अपना होश कहाँ
अपनी सुध भूल जाती हूँ

और तुम ..??

कभी सब्जी में नमक नही
चाय में चीनी कम
कुरते में बटन नही ..घर द्वार साफ नही
बिस्तर मैली कुचैली
झोल झाल से दीवारें भरी ..कुछ करने का शवुर नही
और न जाने क्या क्या
दिन रात सुनती हूँ ,सुनती रहती हूँ
तुम्हारी आवाजे दीवारों को ही नही
दिल के धडकनों को भी रोक देती है
सोचती रहती हूँ
सुख दुःख जन्म मरण में साथ देने के वचनों के साथ
तुमने मुझे लाया था
मन को सपनो से सजाया था
घर से बाहर तक का काम मै करती हूँ
क्या मै तुम्हारी पत्नी हूँ ?? या कि जीवन पर्यंत
बिन तनखाह खटने वाली नौकरानी हूँ ??

प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है................

Wednesday, December 5, 2012

-अहीं बाजु.....


भगवन !
अहाँ तं मनुखक निर्माण केलों 
तखन ई अमीर गरीब के बनौलक ? 
जाति पाति, धर्म अधर्म क देवार
के ठाढ़ केलक  ? 
संबंधक इतिहासक पन्ना यांत्रिक युगक 
बरखा मे गलि गेल अछि 
भूख पिआस गरीबक मरि गेल अछि 
पलास सँ आगि निकलि रहल अछि 
                   हवा सँ बाण 
रेतकण झुलैस  रहल , वर्षा कें 
               अभिमान !
डोका कांकोर करमी पर जीवैत
देह पर फाटल चीटल वस्त्र नेने 
की ओकरा अहाँ ह्रदय नहि देने छी ?
की ओहि मे इच्छा कामना 
                 नहि अंकुरेने छी ?
आंखि मे सपना नहि जगौने छी ??
तखन किएक गरीब आर गरीब 
भेल जा रहल..
गरीबीक अभिशाप अमीरी क वरदान 
      बनल  जा रहल
की ओकर भगवन केओ आन छैथ 
छैथ तं के छैथ ---अहीं बाजु..... 
                           ( भावांजलि सँ )

Sunday, December 2, 2012

DR. RAJENDRA PRASAD


 राजेन्द्र प्रसाद--अमर रहैथ 

आय बटवृक्ष क मधुर छाहिर कत'
दनुजता क लंका में अंगदक
अटल पैर कत' ?
काल पंथ पर चलि गेलाह जे
सिनेह हुनक
सरसावैत अछि 
मोन प्रानक भ्रमित दिशा के
बाट वैय्ह  देखाबैत छैथ
चिर मंगलमय छल लक्ष्य महान
जीवन एक ,पग एक समान !
स्निग्ध अपन जीवन कय क्षार 
करैत रहलाह  आलोक प्रसार 
श्रृष्टि क इ अमिट विधान 
मिटबा  में  सय वरदान ...
सुनी हुनक  हुंकार 
नव यौवन बल  पावैत छल 
माथ पर बाँधी कफ़न  
कर्मक्षेत्र में आबि अत्याचार
मेटाबैत छल
हुनक सहस देखि देखि
तरुण सिंह लजावैत छल !
आय
मानवता क धवल आकास कत'
मानव एक  मानवता  गुण ,
बतवै वाला  धाम  कत'
अय विश्व  !
अहीं बताबु
जीरादेई    सन   गाम   कत'       ???

तुम पढ़ न सके


बिखरी हूँ  इस तरह कि  खंड खंड कविता बन  कर   रह गयी 
तुम पढ़ न सके 
कसक दिल में रह गयी 
प्यास कुछ ऐसी बढ़ी 
समन्दर को दरिया समझ पी गयी ...
सरसराते पत्तों की आवाज गूंजती कानो में कह गयी -
-'अरे ये बेसुरी सी बात !'-- हवा भी जैसे सहम  गयी ........

GOOD MORNING

Bikhari hun iss tarah ki khand khand kavita bn kr rah gayi
Tum padh na sake 
Ye kasak dil me rah gayi 
Pyas kuchh aisi badhi 
Samandar ko dariya samjh pi gayi 
Sarsarate patton ki awaj gunjti kano me kah gayi --
--'Are ye besuri si baat !' - hawa bhi jaise sahm gayi.....

Saturday, December 1, 2012

दूर रहो तुम मीत मेरे


अपने जीवन का परिचय किससे कहना 
कैसे कहना !
धरती के कण कण में अपने मन का 
रमते रहना 
मिटने में ही मैंने जाना जी जाने का 
स्वाद 
आंसू के माला का तर्पण 
औ हँसने  का अवसाद !
तुमने कहा बंधु  मेरे
लो मेरा ये वरदान 
मेरे स्नेह के निभृत निलय में पी जाओ 
सब अपमान  
तुमने केवल सहना जाना ,सहने में जीवन 
की प्यास मै 
अमृत ले आया हूँ , करुण जगती की आस '`
मैंने अपने दृग उठाए अचंचल स्थिर पलक 
पुतलियों की लहरों पर 
वेदना थी रही छलक ..
तुम तो अमृत के बेटे हो , अमृत लेकर आये हो 
मेरे अभाग्य को अपनाकर निज 
सौभाग्य बनाने आये हो पर 
मै हूँ अभिशाप की छाया जलना और जलाना जाना 
तेरे अमृत-घट को भी झुलसाना  जाना 
दूर रहो तुम मीत मेरे 
मेरे सुख दुःख मेरे गम से अभिशाप की बदली में 
डूबे 
टुकड़े टुकड़े जीवन के तम से .....