Monday, March 25, 2013

HAPPY HOLI


 मन क्यों पलाश सा दहके 
फाग की मधुर अनुगूँज  !
चैता की विरहन  धुन  ... 
भीगी जाती पलकें ... 

मन को उन्मन कर जाती होली  .. 
रंगों की बारिश में 
प्यार का संदेसा दे जाती होली 
इन्द्रधनुषी रंगों सा  पलछिन 
बिखरे जीवन में खुशियाँ अनगिन 
ले लो तुम सब मेरा प्यार 
सतरंगी होली खुशियाँ बिखेरे 
बारम्बार ..................

HAPPY HOLI 

Mnn kyon palash sa dahke / faag ki madhur anugunj ! chaita ki virahan dhun / bhingi jati palken / mnn ko unmn kr jati  holi , rangon ki barish me  pyar ka sandesha lati holi / indradhanushi rangon sa palchhin, bikhre jivan me khushiyan angin / lelo tum sb mera pyar , satrangi holi khushiyan bikhere barambar...

 


हम पलक पाँखि में पोसि रहल छी
बीतल युगक नीरव इतिहास !
नयन-पथ सं सांस में मिलि
शिखी चुनैत जलजात रहल
'आह ' सं निकलि 'चाह' में खिली
टूटल आस-पारिजात रहल !

चंचल सपना पुलक भरल

स्पंदन चिर व्यथा केर
सुधि सं सुरभित स्नेह घुलल
आखर तितल हमर कथाक !
नयन में अनगिन चुम्बन
सजग स्मिति रहल उन्मद
सांस में सुरभि, वेदनक क्षण
चातकी सन तकैत प्रिये -पद !

आय तं सब सांस में भरल
मरण त्योहारक निस्सीम जय
मौन में प्रानक तार टूटल
निसांस भेल पिआस में लय
गहन तम-सिन्धु में उमड़ल
अधर पर अंगारक हास
बीतल युगक नीरव इतिहास....

अहीं तं कहने छलौं हमर अहाँक सम्बन्ध
' जन्म जन्म क अछि
प्राण प्राणक अछि '
हमर सांसक जान बनि गेल
अधरक स्वर तान बनि गेल
जीवनक मुस्कान बनि गेल !
विश्वासक दर्पण में
निशि चम्पई अवैत छलीह
सांझे साँझ मोनक तट पर
बौरायल मीरा गवैत छलीह !
हमरा अहाँ के बान्हि गेल बचनक
पुरवैया
बरैस गेल करिया मेघक फूल!
उन्मुक्त भेल प्राण सात सुर पर
नेने बिन गाओल गीतक सनेस
मुदा,
अहांक वो बचन ?
तप्त बालुका राशि पर खसल जेना
आहत भ एक बुन्न .............
सुधिक देहरि पर जरैत आरती केर दीप
चानन सन पीर बेकल हमर गीत
उषाक आँचर सँ
कतेको पारिजात झरैत रहल
रजनीक श्यामलता में कतेको
सिंगारहार खिलैत रहल...
मुदा, अहाँक वचन
विछिन्न प्रसून सँ पराग जेना झरि गेल
ज्योतिक रात्रिक नाम लिखल पाती पर
अन्हार जेना खसि गेल.......

.सागरक  शांत लहरि देखी 
 किछ किछ होयत अछ मोन में
की सरिपों  नुकायल अछ सुनामी
एकर अंतर में ??
कखनो  कोसी क हुँकार
कखनो  गंगाक  आर्तनाद .......
हिमालयक  चंचला बेटी सब
सागरक छाती  सँ लागि जायत अछ
मुदा,
कोन वेदना  सागरक  सुनामी बनि 
जायत  अछ ..
मोन होयत  अछ
चीरी दी एहि रहस्य के
देखि ली  सागरक  छाती में बैसल
उपास्य के
किएक बेकल अछ पल पल
प्रतिपल
नै मेटैत  अछ तरास जकर
की अकास स मिलवाक आस एकर..
आतुर  अधीर
की व्यर्थहि  रहल  एकर पीर
नहि ते केकरो  पिआस मेटा पवैत अछ
नहि ते स्वयम अपन तरास
बुझि   पवैत अछ
युग युग सँ  तटक निर्मम रेत कें
भिजावैत  अछ
मुदा, किनार ओहिना  निर्विकार
निर्लेप  रही जायत  अछ
की ई  नियति प्रकृतिक  थीक
पुरुष  अपना के किनार बना  लैत छैक
भिजैत  अछ, तितैत  अछ
किछ बाजि  नहि पवैत  अछ
जीवनक   अर्थ   खोजिते रहि  जायत छैक.............................




चलू,  परछाहींक पार   हम घूमी   आबि
लिखल   जे  सांसक  गाथा
मौनक भाषा में  ओकरे  हम गुनगुनाबी......
दर्द  प्राण में  अहाँक  स्मृतिक
विलाखि  विलाखि   छटपटा  रहल
आहत  गीत  उमड़ी   उमड़ी
बैसी अधर   पर कुहैरी   रहल  !
साँझक  दम  तोडैत  बेला 
चैती  बयारक  कम्पन 
चाँदनी   बैसि   
हमर अहाँक
लिखि  रहल   ओ भाषा
जे नहि  कहि सक्लों   हम अहांके
नहि  कहि सक्लों  अहाँ हमरा ...
चलू
तखन  इजोरिया  स 
अपन  अहाँक  मौन  गाथा
पुछि   आबि
मौनक   भाषा में  ओकरे हम गुनगुनाबी ............
SHABDON  KE BHI HATH PAIR HOTE HAIN 
VE BHI CHIKHTE CHILLATE HAIN 
MERE SARE SHABD CHHTPATA RAHE THE 
HANF RAHE THE 
TUMHE SWARIT PUKAR RAHE THE 
US DIN BHI NIHSWAR MAI TUMHE PUKARTI RAHI 
PR TUM NE N BOLNE KI KASM KHA RAKHI THI 
MERI NANHI SI JAN ME TUM NE ANGARE BHAR DIYE 
JIWN BHAR JALNE KE LIYE
TADP TADP KR JINE KE LIYE 
TUMHE TNIK DAYA N AAYI 
JIS BALIKA-VADHU KO TUMNE 
LATA SI 
 SINCHA, SAHLAYA 
AAKASH KI UNCHAI CHHUNE KA SAPN 
DIKHAYA 
USE HI KAISE TUM NE PARE JHATK DIYA ??
'NIRMAM' 
BHI KAISE KAHUN TUMHE 
TU NE TO MAMTA KA PATH PADHAYA 
JIVN ME PYAR KA JAHAN BASAYA....
AAJ TERE USI PYAR KO MAI BANT RAHI HUN....

अहीं तं कहने  छलौं हमर  अहाँक सम्बन्ध 
' जन्म जन्म क अछि    
प्राण प्राणक अछि '
हमर सांसक  जान बनि  गेल 
अधरक  स्वर तान बनि गेल
जीवनक  मुस्कान बनि गेल !
विश्वासक दर्पण में 
निशि चम्पई अवैत छलीह 
सांझे साँझ मोनक तट पर 
बौरायल मीरा गवैत छलीह !
हमरा अहाँ के बान्हि गेल बचनक
पुरवैया
बरैस गेल  करिया मेघक फूल! 
उन्मुक्त  भेल प्राण सात सुर पर 
नेने  बिन गाओल  गीतक सनेस 
मुदा,  
अहांक वो बचन ? 
तप्त बालुका राशि पर खसल जेना 
आहत भ एक बुन्न .............
सुधिक देहरि पर जरैत आरती केर दीप 
चानन  सन पीर   बेकल   हमर गीत 
उषाक आँचर सँ 
कतेको पारिजात झरैत रहल 
रजनीक  श्यामलता में कतेको 
सिंगारहार   खिलैत रहल...
मुदा, अहाँक वचन 
विछिन्न  प्रसून सँ पराग  जेना झरि गेल 
ज्योतिक रात्रिक नाम लिखल  पाती पर 
अन्हार  जेना खसि गेल.......

ये दुनिया है दुनिया ,यहाँ कोई किसी का नही
धूप की आंच में झुलस गया तन
दुनिया की आग से जल गया मन
तुम ना दे सको प्यार तो कोई बात नही
पत्थर मार के अपना परिचय तो  ना दो
एक  सड़ी मछली 
सारे तालाब को गन्दा करती  
तुम वो मछली बन के तो मत दिखाओ
रंग  अपना  जमाओ रंग अपना बनाओ
सफ़ेद चादर पे काजल तो मत गिराओ....


हमरा मोन पडैत ऐछ अपन घर
जे एकटा मंदिर छल
सरस्वतीक   वास  सन
लक्ष्मी क हास  सन
मंगलमय वरदान सन ..............
दिसा दिसा सँ मधुर रागिनी अवैत छल
सरगम क ध्वनि गवैत छल
प्रेम प्रीति स भरल 
जीवन क गीत स साजल 
ओ हमर घर छल. 
पावैन तिहार क रंग स 
जितिया पावैन बड भारी--उगाह चान कि 
लपकों पुआ क नाद स ;अपन आनक 
उलहन-उल्लास स 
भंगक तरंग सन छल ओ जीवन .....
आय विस्थापित जकां एहि महानगर में 
भटकि रहल छी....
अपन आन लेल तरसि रहल छी  ...
सौनसे शहर देवार स पाटल ऐछ
रहवाला क्यों  नही 
उजहिया जकां लोग भागि रहल ऐछ 
लालसा लिप्साक व्यामोह में 
नहि जानि  कथीक छोह  में 
घर मात्र शरण लेवाक स्थान भ गेल 
एकटा अल्प विराम  बनि  गेल..नहि हास  नै
विलास एते , नै उन्मुक्त जीवनक आस एते
घरबनैत अछ प्यार स दुलारस
हंसी स मजाक स , मुदा,
ईंट, पाथर,सीमेंट घरे नै मानवक ह्रदय पर 
प्लास्टर चढ़ा गेल 
प्यार ,ममता, आदर सब भाव प्लास्टर क 
नीचा दबा गेल 
मर घर कते हेरा
 गेल....

Friday, March 22, 2013


what make some people dearest ,its not just the happiness that u feel when u meet them ; but its a pain u feel when u miss them.
SHEFALIKA VERMA ,SAHITYA AKADEMI WINNER ....a SHORT INTRODUCTION

Among the mature modern writers of Maithili literature Dr. (Mrs.) Shefalika Verma is
known as the “Mahadevi of Maithili”. She was born with a silver spoon in her mouth
on the 9th August’ 1943 at Bhagalpur in Bihar near the house of well known Bengali
writer Sharat Chand where her father was posted as Deputy Collector in Bihar Civil
Service. Her father Late Mr. Brajeshwar Mallik was himself a renowned writer of Hindi
and was later on rewarded by Raj Bhasa Department of Bihar Government. He gave
his first daughter a poetic name Shefalika. Among seven sisters and three brothers
Shefalika is the eldest one
At the age of Fifteen she was married to Mr. Lalan Kumar Verma, a student of Physics Honours
in science college, Patna, who later on chose Law as his profession and rose to
eminence first at Saharsa District Court and then at Patna High Court.

From her very childhood she used to contribute her poems and stories in Hindi
Magazines Chandamama, Balak etc. Tremendous change came in her life after
marriage as her husband Mr. Verma inspired her to write in mother tongue Maithili
(Language of Mahakavi Vidypati) also. Being bestowed with a poetic name she
composed poems, writes short stories, travelogue reminiscences, essays and
sketches etc. with equal proficiency. She writes with equal force in Hindi and
Maithili. She oftenly composes poems in English also. The natural and inherent
minutest feminine sentimentally and emotions in her literary creations sweep
the readers with them. In contemporary maithili literature she is one of the most
forceful writers. While she looks very soft in her short stories and poems, she emits
fire in her essays containing criticism on social evils.

Though she is a very kind hearted person and cannot tolerate the sad plight of
people specially the women, She is a great revolutionary, perhaps due to her birth
on the 9th August (Sahid Diwas). According to her, 'a Nation can not claim to be
beautiful only due to its rivers, mountains, jungles and greeneries, but there is the
need of educated and disciplined persons living in the state of mutual affection,
amity and equality to make it worth living.

She is endowed with wonderful gift of the gab. She gives fiery speeches on problems
of female-folk, specially, female education, dowry system and other social evil and
educational problems. She is so much against the evil of exploitation of women that
she has even revolted in her writings against the tolerance of Sita when she was
banished by Ram. She says “Sita ? Why did you agree to Agnipariksha, A proposal
kept by Ram? Being yourself the power, Accepted Exploitation, Banishment to
Forest. Why did you create Tight-lipped Tradition to make female-life miserable
and mournful ?”. She has also accused Janak for giving the birth of dowry system
by giving so much dowry with Sita. She questions Janak “Why did you throw female
into burning dowry-fire ?”. At times she is very mournful on the attitude of present
generation when she says “Parent nourish all their children, but those children
cannot maintain their parent and keep with them”.

In 1974, she was acclaimed as the Best Maithili Prose Writer and was awarded with
Mahamahopadhyay Dr. Umesh Mishra Memorial Gold Medal by Maithili Academy,
Allahabad, which she received from the hands of Dr. Babu Ram Saxena, Former Vice-
Chancellor of Allahabad University. She was also honoured with the title of ‘KAVYA
VINODINI’. While reading her collection of reminiscences ‘Smriti Rekha’ tears rolled
down the chicks of famous Maithili Writer Pandit Hari Mohan Jha on the pathos and
emotional feelings contained in the book. Her other books ‘Vipralabdha’ (collection
of poems), ‘Ekta-Akash’ (short stories collection), ‘Yayawari’ (travelogue), ‘Bhawanjali’
(collection of devotional prose songs) and ‘Kist-Kist Jeevan’ (autobiography) have
already been published. Though in prose ‘Yayawari’ has been written in a unique
poetic style, it is a combination of travelogue and her Biography in parts depicting
the Cultural and Social Systems prevailing in different parts of India, a unity in
diversity. Her novel ‘NAGFANS’ reveals the problems of women in society. It is
written in the atmosphere of Mithilanchal & England. ‘Aarthyug’ is a collection of
short stories which depicts the money is the main cause of social evils. Kist-Kist
Jeevan, an autobiography, throws light on writer, how she, being a women, suffered
immensely due to the social evils and backwardness of the society.

She started writing in Maithili since 1961 through Maithili journals namely, Mithila
Mihir, Sona Mati, Vaidehi, Aakhar, Agnipath, Vasat, Kosi–Kusum etc. Having received
Ph.D. Degree in Hindi on her thesis ‘Kamayani Aur Urvashi Me Nari Chitran’ she is
Reader and Head of the Department of Hindi in S.N.S.R.K.S. college , at Saharsa
in Bihar. She is recently retired from the P.G. Hindi Department of A.N. College,
Patna. She has also published her book ‘Thhare Hue Pal’ (collection of Hindi poems).
Her several essays and poems have been published in important Hindi Magazines
namely, Kadambini, Sarika, Saptahik Hindustan, Rastrabhasha Sandesh etc. Her poems in
English have been published in different magazines of Madras (Chennai) and Orissa.

Her Maithili poems have been translated into English in Penguin Series, Oriya, Gujrati,
Nepali, Hindi and other Indian languages.

She was the Joint Editor of Hindi child magazine ‘Chamakte-Sitare’ and Maithili
journal ‘Tatka’ & at present she is also in the Editorial Board of so many magazines.

She was a Member of the Advisory Board of Mathili of Sahitya Akademi, Delhi. She is
also a Trustee of Bhola Lal Das Memorial Foundation, Allahabad, which is a trust created
for promoting literature and literary activities in the country.

She was the Municipal Commissioner of Saharsa Municipality for ten years continuously
since its inception. She was the Member of Block Development Committee, Nauhatta,
Saharsa. She was also the General Secretary of Saharsa District International Womens
Committee. She was also Member of several Committees, namely, District Adult
Education Committee, Red Cross Society, Peace Committee, Child Welfare Committee etc.
When HH The Maharaja College for Women, Thiruvananthpuram was celebrating
his CENTENARY CELEBRATINS, 1977 under the able guidance of Chief Patron Shri E.K.
Nayanar, Chief Minister, Kerala asking for her articles, wrote about her, “it would be

a great boon to us and to all the women in this part of the Country to become aware of
writers like you who have contributed so much to the cultural wealth of our Country”.

Dr. Mrs. Shefalika Verma is a combination of diverse qualities and is an important
writer in contemporary Maithili literature since 1961. Hindi writer and critic Dr. Ram
Kumar Verma of Allahabad after reading her book Vipralabdha in 1978 has been
written, “The Literary insight achieved by her in such a young age is an indicator of her

future. The emotions depicted in her collection of poems ‘Vipralabdha’ is to be imitated by
the poets of young generation”. Similarly Maithili writer and critic Mrs. Nirja Renu has
compared her writings with those of Jane Austen. According to critics of Maithili
literature she is the single poet of Chhayabad in Maithili. A historian of Maithili
literature Dr. Dinesh Jha in his book “Maithili Sahityak Aalochnatmak Itihas” has called
her as ‘Mahadevi of Maithili’. According to Mahavaki Arasi Prasad Singh “the burden of
family makes the life of a female like a desert, but it is simply surprising as to how
Shefalika creates such sentimental and emotional literature while shouldering such heavy
burden of a big family”. Her article on Maithili Literature was also published in “2001
Encyclopedia : Volume–2” by Indmark Publishing Banglore. She was awarded
with “Mahakavi Yatri Samman” of 2004 for her outstanding contributions in the field
of Maithili literature. Her name was also recommended for “Women of The Year,
2004” by the Biographical Institute, North California. She has been honoured with
the title of ‘Mithila Vibhuti’ in 2005. She also presided three days National Seminar
on “Upanyasak Vikas”, organized by Sahitya Akademi, Delhi from 23/03/2007 to 25/
03/2007 in Jamshedpur. She received “Dr. Murlidhar Srivastava Shekhar Samman,
2007” for outstanding contribution in Hindi Literature by Sri Nitish Kumar, Chief
Minister, Bihar. Her Poem “My Village” has been translated in English by R.K. Zide of

Chicago University in Penguine Series and included in the syllabus of Board Exam. of
United Kingdom (UK). At present, she is the Member of Governing Body, Maithili-
Bhojpuri Akademi, Delhi (NCR)

.Recently she has attended a function as a CHIEF GUEST in LONDON of MAITHIL SAMAJ .UK.

LIST OF BOOKS PUBLISHED & UNPUBLISHED

Published

1-Vipralabdha-----kavita sangrah
2-Smriti Rekha----sansmaran sangrah
3-Ek Ta Akash----katha sangrah
4-Yayawari---------yatra sansmaran
5-Bhawanjali------gadya geet
6-Aarth Yug-------katha sangrah
7-Nagfans---------novel ...
8-Madhugandhi Basat---kavita sangrah
9-Thhare Hue Pal------Hindi kavita sangrah
10-Kist Kist Jeewan---Aatmkatha

11-Aakhar Aakahr prit -----Patratmk aatmkatha....( dharawahik in Videha on net..
12..MOHPASH

Translation Work

12- Phanishwar Nath Renu

Unpublished

1. Rajanigandha
2. So, I hope ( English poems )
3 a maithili novei

पीछे से आती तेज़ ठहाकों की आवाज़ !

मै थी कि गहरी नींद में डूबी जा रही थी

जैसे मुझे कितने दिनों बाद ये चैन की नींद
नसीब हुई हो

क्या रिश्ता था
नींद और ठहाकों में ?

शायद ये कवि -ह्रदय की निश्छल आवाज थी

जो हौले हौले थपकियाँ दे मुझे
सुला रही थी
बिना किसी शिकवे शिकायत ! .....

मै नींद की घाटियों में उतरती जा रही थी .....

और

अनेकता में एकता का भाव लिए
विश्व बंधुत्व की परिकल्पना किये
सार्क सम्मेलन के लिए
सात अजनबी भाषाओँ के साथ बस सरपट
सड़कों पर दौड़ रही थी......

( दिल्ली से आगरा कोच में )

Pichhe se aati tez thahakon ki awaj / aur mai gahri nind me dubi ja rahi thi / jaise mujhe kitne dino baad ye chain ki nind nsib hui ho / kya rishta tha nind aur thahakon me / shayd ye kavi hriday ki nishchhl awaz thi / jo houle houle thapkiyan de mujhe sula rahi thi / bina kisi shikve shikayt ke / ../ mai nind ki ghatiypon me utarti ja rahi thi ../ aur anekta me ekta ka bhaw liye /vishw bandhutw ki parikalpna kiye / saarc sammeln ke liye / saat aznbi bhashaon ke sath bas sarpat sadkon pr doud rahi thi......
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Thursday, March 21, 2013


अपने अपने दर्द अपने अपने गीत हैं एक साज़ पर बजता ये संगीत है 
सभी अकेले चलते हैं , यादों की बारात लेकर , अपनी भूख अपनी प्यास लेकर 
कवि  नही चलता अकेला ,उसके साथ कविता की झंकार है
मुस्काती ,हाथ थामे ज्यों काँटों के बीच गुलाब है .....
 
Apne apne dard apne apne git hain / sabhi akele chalte hain / yadon ki barat lekr  ,apni bhukh apni pyas lekr / kavi nhi chalta akela , uske sath kavita ki jhankar hai / muskati ,hath thame jyon kanto ke bich gulab hai.....

Wednesday, March 20, 2013

मै कोई ठूंठ दरख़्त नहीं हूँ 
जिसमे ना हो जीवन की धडकन 
वो टूटी शाख भी नहीं हूँ 
जिस पे ना चहचहाना चाहती हो बुलबुलें में
मै पतझड़ का ओ वृक्ष हूँ 
जहाँ आशाओं कामनाओं की कोंपलें 
जन्म लेती रहती है , प्यार के सावन को 
तरसती रहती है 
मुझे गुजरा वक़्त मत समझो जो 
लौट कर आता नहीं , ना ही वो पथ्थर समझो 
जिसे आवाजों के तीर बिंधते नहीं
मै बंजर नहीं ,जहाँ आशाओं की खेती होती नहीं है
मुझे लाश मत समझो
मेरी सांसे अभी भी चलती रहती है...



mai koi thhunthh darakht nahi hun / jisme na ho jiwn ki dhadkan / mai vo tuti shakh bhi na hun , jis pe na chahchahana chahti है bulbulen / mai patjhad ka vo vriksh hun jahan ashaon kamnaon ki konple jnm leti rahti hai / pyar ke sawn ko tarasti rahti hai / mujhe gujra waqt mt smjho ,jo laut kr aata nahi / na hi vo paththr samjho ,jise awajon ke tir bendhte nhi/mai banjar nhi jahan ashaon ki kheti hoti hi nahi / mujhe lash mt samjho , meri sansen abhi bhi chalti rahti hai........

ये लताएँ ....


लताएँ तरुवर का सहारा ले आगे 
बढती हैं किन्तु, 
बेसहारा नही होती ये लताएँ 
सहारे की तलाश करती भी नही 
ये लताएँ 
अपना रास्ता खोजती 
अपनी मंजिल को तलाशती 
धरती की ही गोद में ,उसी के वक्ष पर 
यत्र तत्र फ़ैल जाती ये लताएँ ..
जिन्हें आकाश छूने की ललक है 
वो किसी न किसी उर्ध्वगामी तरुवर  का 
सहारा ले 
ऊँचाइयों के सपने देखने लगती है 
कामनाओं की डोर  बुनने लगती है 
प्यार से दुलार से  तरुवर को 
अपनी भुजाओं में बांध लेती  ये लताएँ 
और फिर 
तरुवर का ह्रदय स्पंदित ; प्रकम्पित लता की आत्मा 
शिव और शक्ति कीतरह 
प्रकृति और पुरुष की तरह 
आसमान की ऊँचाइयों को छूने का 
प्यार ममता मानव कल्याण का औदात्य भाव 
बिखेरने का संकल्प लेती 
पनपती जाती ये लताएँ ............





Tuesday, March 19, 2013

दिल्ली से आगरा कोच में


पीछे से आती तेज़ ठहाकों की आवाज़ !
मै थी कि गहरी नींद में डूबी जा रही थी 
जैसे मुझे कितने दिनों बाद ये चैन की नींद 
नसीब हुई हो 
क्या रिश्ता था 
नींद और ठहाकों में ? 
शायद ये कवि -ह्रदय  की  निश्छल आवाज थी 
जो हौले हौले थपकियाँ दे मुझे 
सुला रही थी 
बिना किसी  शिकवे शिकायत ! .....

मै नींद की घाटियों में उतरती जा रही थी .....
और 
सात अजनबी भाषाओँ को लिए बस सरपट 
सड़कों पर दौड़ रही थी .........

                     ( दिल्ली से आगरा कोच में )

Pichhe se aati tez thahakon ki awaj / aur mai gahri nind me dubi ja rahi thi / jaise mujhe kitne dino baad ye chain ki nind nsib hui ho / kya rishta tha nind aur thahakon me / shayd ye kavi hriday ki nishchhl awaz thi / jo houle houle thapkiyan de mujhe sula rahi thi / bina kisi shikve shikayt ke / ../ mai nind ki ghatiypon me utarti ja rahi thi ../ aur saat aznbi bhashaon ko liye bs sarpt sadkon pr doud rahi thi........

Monday, March 18, 2013


कोरे कागज़ की तरह होते हैं जीवन 
जो चाहो लिख दो तुम 
मै तो क्या कोई कुछ भी न बोलेगा  
बोलना चाहे  तब भी नही 

कलम तुम्हारे हाथ है 
जो चाहो लिख दो तुम 
लिखने की आज़ादी सब को है 
बोलने की भी  आज़ादी सब को है 
लिखो  बोलो तेरा अपना मन है .. हाँ मन ??
लिखने से पहले , बोलने से पहले 
क्या अपना मन ही तुम्हे नही टीसता  होगा ??
कागज के सीने से चीख क्या नही 
उठती होगी >>???


Kore kagaz ki tarah hote hain jivan 
Jo chaho likh do tum 
Mai to kya koi kuchh bhi na bolega 
Bolna chahe tb bhi nhi 

Kalam tumhare hath hai 
Jo chaho likh do tum 
Likhne ki azadi sb ko hai 
Bolne ki bhi azadi sb ko hai 
Likho bolo tera apna mnn hai .. han mnn ??
Likhne se pahle bolne se pahle 
Kya apna mnn hi tumhe nhi tistaa hoga ?
Kagaz ke sine se chikhen kya nhi uthhati hongi ...???


Sunday, March 17, 2013

समय का चक्र


शक्तिशाली सूरज को बादल ही नही 

कभी कभी 

छोटे छोटे धूल कण भी सघन हो 

धूल धूसरित कर  देते हैं 

पता नही किस अपराध का बदला लेते हैं 

सूरज छटपटाता बाहर आने को 

पर समय का चक्र !

उसे भी नही छोड़ता 

हम इंसानों की क्या हस्ती ...?

ताज


ताज! 
 मुमताज़ को मैंने रात के अँधेरे में  उसाँसे भरते देखा 
फिर  धूप की तपिश में छटपटाते भी देखा 
आंसू बहाती 
शाहजहाँ की सूखी बेनूर  आँखों को देखा 
जो यमुना को भी उदास कर गयी  थी 
पता नही कैसी पूरनमासी  की रात होगी 
जिसने  अपने आगोश में मुमताज़ और शाहजहाँ
को लेकर  
सारे कायनात को
पागल कर दिया होगा ..........