Thursday, September 19, 2013

अपना चेहरा

परछाइयों को पकड़ने की आदत कुछ इस कदर हो गयी है मुझे
देखती हूँ दर्पण में चेहरा अपना 
परछाहीं तेरी ही मेरे अक्सों में उभर आती है ..
अपना चेहरा भी प्यारा लगने लगता है मुझे ...

संवेदनशीलता FOTO -- LAKE DISTRICT OF WORDSWORTH



ई सांच अछि जे हमर कविता में रोटी कपडा मकानक समस्या नै अछि , गरीबी , बेरोजगारी भूखमरी क भावक अभाव अछि।  , हम  सुखक अभाव दुःख नै बुझैत छि।  , दुखक अभाव सुखो नहि , दुःख हमर जीवनक स्पन्दन थीक --दुःख  कलाकारक मोक्ष होइत अछि - कोनो कलाकार जाधरि अन्तस्तल सं दुखक भाव कें आत्मसात नही करैत छैथ ,ताधरि हुनक रचना प्राणविहीन प्रतिमा , संवेदनहीन रचना रहैत अछि  . दुःख तं जीवन थीक , अवसाद अन्धकारक अभिशाप नहि  हम मानवता के दुखक माध्यम स जानवा लेल चाह्लों। दुःख मानवक ह्रदय अन्धकार सं नही भरैत  छैक ,वरन प्रकाशक आलोक लोक सं दीपित क' दैत  अछि ज़ाधरि मानव लेल करूणाक महत्व रहत ताधारी जीवन दुखक आलोक में चलैत रहत
सात्विकताक उदारता , करूणाक  स्निग्धता आ संस्कृतिक  भासुरता  कोनो कलाकारक मूलभूत विशेषता रहैत छैक।  दुखक संवेदनशीलता के बुझवा लेल संवेदनशील हृदयक आवश्यकता होइत अछि ……………।
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Wednesday, September 18, 2013

दौलत

जिंदगी ले आई है मुझे किस मोड़ पर होठ हँसते हैं , पर हंसने की  अब ताकत नही 
आपको देखा ,आपको समझा ,कहीं ये खुदा की इबादत तो नही। । 
जेह्न में घुमती है तस्स्वुरात आपकी 
कहीं आपकी भी ये हालत तो नही  
होठ कुछ कहना चाह कर भी 
काँप के रह जाते हैं 
आप  समझ लेना इसे मेरी आदत नही। . 
साथ आपका कुछ नही  अपने को बस भूलना है 
क्या ताजिन्दगी की मेरी ये दौलत नही  ……???