Wednesday, February 27, 2013

MAI NA RAHUNGI............

एक दिन ऐसा भी आएगा 
जब तेरे पास मै ना रहूंगी 
हरसिंगार सी मै तो बिखरी मिलूंगी 
सुगंध बन के मन प्राणों में तेरी 
मै बसती रहूंगी................
मेरी कमी तुम ना महसूस करना 
तेरे दिल में यूँही मुस्कुराती रहूंगी
जन्मो में मै ना मिलूंगी तुम से 
साल में एक बार तो आती रहूंगी 
आँख नम ना करना कभी तुम 
तेरे होठो पे बन के हंसी मै
खिलखिलाती रहूंगी...
देख लो मौसम आ गया फिर
शेफालिका सी यूँही बिखरी मिलूंगी...

Ek din aisa ayega jb tere pas mai na rahungi/ harsingar si mai to bikhri milungi ,sugandh bn ke mn-prano me teri mai basti rahungi / meri kmi tum na mahsus karna /tere dil me yunhi muskurati rahungi / jnmo me mai na milungi tum ko sal me ek bar to aati rahungi/ aankh nmm na karna kbhi tum ,tere hothho pe bn ke hansi mai / khilkhilati रहूंगी/ dekh lo mousam aa gaya fir ,shefalika si yunhi bikhri milungi ......


ओहि वसन्तोत्सव में  अहांक  अदृश्य कर
अंगराग  
लेपि गेल हमरा 
चानन  पीर जगाय गेल हमरा 
अहाँक स्वप्निल आंगुरक सिहरन 
अहंक अदृश्य मधुमय छुवन 
समस्त तन में संगीत लिखि गेल 
हमर समस्त मोन के 
बांसुरी   बनाय  गेल 
भय होइत अछि  प्रभो !
ओहि संगीत के अहाँ बिसरि नहि जाय 
मुरली उपेक्षित नहि राखि दी अहाँ .......

समग्र धरती सौंसे अकासक विस्तृति में 
समा नहिओहि वसन्तोत्सव में  अहांक  अदृश्य कर
 पओत दुःख हमर 
आह !
प्राणक ई अप्रतिहत आकुल नाद !!!!!


अहाँक ओ अधर स्पर्श !
मोन-प्राण के कविता बनाय गेल 
अधरक गुलाब विहुंसी  गेल 
ठोर हमर गुलाब बनि गेल 
सूखल जीवन 
प्रेमक रंग स रंगी गेल 
तनक हरीतिमा मिलन गीत गाबि गेल 
मोनक मोर नाचि गेल 
मुदा 
बंद पलक अचकहि खुजि गेल 
निन्न टूटी गेल 
गुलाबक पंखुरी झरि झरि 
धरती पर खसि  गेल 
अहाँ कतोउ  नहि छलों 
कत्तो नहि 
किन्तु, 
प्रकृतिक कण कण अहाँ कें धारण केने 
नाचि रहल छल 
हम नमित भ उठलौं ........