Wednesday, February 27, 2013



ओहि वसन्तोत्सव में  अहांक  अदृश्य कर
अंगराग  
लेपि गेल हमरा 
चानन  पीर जगाय गेल हमरा 
अहाँक स्वप्निल आंगुरक सिहरन 
अहंक अदृश्य मधुमय छुवन 
समस्त तन में संगीत लिखि गेल 
हमर समस्त मोन के 
बांसुरी   बनाय  गेल 
भय होइत अछि  प्रभो !
ओहि संगीत के अहाँ बिसरि नहि जाय 
मुरली उपेक्षित नहि राखि दी अहाँ .......

समग्र धरती सौंसे अकासक विस्तृति में 
समा नहिओहि वसन्तोत्सव में  अहांक  अदृश्य कर
 पओत दुःख हमर 
आह !
प्राणक ई अप्रतिहत आकुल नाद !!!!!

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