Thursday, October 25, 2012

तेरी याद स्मृति के झरोखों से 
छन छन कर आती रही
मेरी लेखनी बेजान पन्नो को रंगती रही 
किसी ने कविता तो किसी ने कहानी समझी 
पर 
मेरी जिन्दगी में जो तेरी यादों के घुन लग गए 
उसे चुनने वाला कोई नहीं
मेरा अंतर रोता रहा 
मेरी उहा तडपती रही 
पर लोगों ने कविता को 'ट्रेजिक' जाना 
कहानी को दुखमय 
किसी ने मुझसे कुछ पूछा नहीं 
जिसने अंगारे चुन चुन कर अपने 
तप्त अंतर को और भी 
आतप्त किया
जीवन में वेदना का श्रृंगार किया.....
  

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