Saturday, November 24, 2012

वीराने मे कैक्टस

कितना मुश्किल है जिए जाना भी 
जिंदगी की कैद मे साँस लेना भी 
दिल के जख्मो मे भी आंसू निकल आये 
खून के कतरों मे भी दर्द छलक आये 
कितने अरमा से छुवा था मैंने गुलाबो को 
उफ़ हथेलियों तक मे कांटे उभर आये 
चल दिए तुम भी इस जहाँ से आह 
दिल के वीराने मे कैक्टस निकल आये 
यूँ गड़ती है कलेजे मे कभी याद भी तेरी
जैसे कैक्टस मे कोई फूल खिल आये

2 comments:

  1. वाह खूबसूरत बेहद उम्दा प्रस्तुति बधाई स्वीकारें खास कर ये पंक्ति तो लाजवाब है
    अरुन शर्मा
    www.arunsblog.in

    कितने अरमा से छुवा था मैंने गुलाबो को
    उफ़ हथेलियों तक मे कांटे उभर आये

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