Thursday, August 6, 2015

तुम हो कहाँ.? 
.भटकती हवाओं का संस्पर्श तो 
पाती हूँ 
 पर तुम्हारी तरह ही अदृश्य ..
इन मेघमालाओं में 
विचरने की पहचान तो 
मुझ में अंकित है ही पर वे भी 
तुम्हारी तरह दूर मुझसे काफी दूर...
दुःख मेरा जीवन साथी बन गया है
नही 
 मैंने दुःख को अपना लिया,
नही नही  दुःख ने ही मुझे 
अपना लिया है.. 
पता नही किसने किसको  अपनाया है 
पर 
वो मेरा प्रियतम  बन बैठा  
मेरी मुस्कान है 
 इसीलिए तुम्हारी तलाश अभी भी जारी है ...
तुम्हारी तलाश में दर्द ने मेरा साथ दिया 
 दुःख ने मेरा हाथ पकड़ा  
मै तुम्हे  खोजती रही .
.ये कैसा अपनापन है 
 कैसी बेकली है....
तुम्हे पता भी नही..तुम्हारी तलाश 
मेरी पूजा है 
मेरा ध्यान है- धर्म है....

.......

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