Tuesday, September 11, 2012

ANDHIYARI RAJANI

मै तो थी  अंधियारी   रजनी 
कितनी लौ  जला दी तुम ने 
जिसे निकट से देख ना पाती 
उर अंतर मन से पहचाना 
दूर कहीं है 
जिसको मैंने प्राणों का संगीत है माना 
मै तो फली फूली फुलवारी थी 
कितनी पतझार उठा दी तुम ने 

निज पीड़ा में घुल घुल 
कुछ कथा कहानी लिखती थी 
अनचाहे अनजाने आंसू से 
अंतर का कोना रंगती थी 
मै तो थी शान्त नदी की धारा
कितनी उर्मि उठा दी तुमने 

क्यों कर भूलूं तुझे जन्म भर 
सुधि की बेसुध छांवों में 
बिछुडन का ले दर्द उम्र भर 
भटकूँ सपनो के गावों  में
मै तो थी बिरवा तुलसी की 
कितनी 
जोत जला दी तुमने ....... 

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