Friday, October 30, 2015

रावण जल गया उस महान पंडित को बुराइयों का प्रतीक समझ हम हर साल जलाते हैं , करोड़ों रूपये स्वाहा कर , वातावरण को प्रदूषित कर हम आनंद मनाते हैं --पर क्या हम अपने अन्दर की बुराईयों को नष्ट कर पाते हैं , अहंकार का नाग फन काढ़े हमारे ह्रदय को ग्रस रहा होता , क्या हम उसे मार पाते हैं??? काश ! मानव मानव बन पाता !, अपने बहार भीतर को पारदर्शी ,निरभ्र और स्वच्छ बना पाता है ???
प्रश्न ढेरों ढेर ,उत्तर कहीं नही.
.देश में किसी के पास नही---

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