लताएँ तरुवर का सहारा ले आगे
बढती हैं किन्तु,
बेसहारा नही होती ये लताएँ
सहारे की तलाश करती भी नही
ये लताएँ
अपना रास्ता खोजती
अपनी मंजिल को तलाशती
धरती की ही गोद में ,उसी के वक्ष पर
यत्र तत्र फ़ैल जाती ये लताएँ ..
जिन्हें आकाश छूने की ललक है
वो किसी न किसी उर्ध्वगामी तरुवर का
सहारा ले
ऊँचाइयों के सपने देखने लगती है
कामनाओं की डोर बुनने लगती है
प्यार से दुलार से तरुवर को
अपनी भुजाओं में बांध लेती ये लताएँ
और फिर
तरुवर का ह्रदय स्पंदित ; प्रकम्पित लता की आत्मा
शिव और शक्ति कीतरह
प्रकृति और पुरुष की तरह
आसमान की ऊँचाइयों को छूने का
प्यार ममता मानव कल्याण का औदात्य भाव
बिखेरने का संकल्प लेती
पनपती जाती ये लताएँ ............
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