ताज!
मुमताज़ को मैंने रात के अँधेरे में उसाँसे भरते देखा
फिर धूप की तपिश में छटपटाते भी देखा
आंसू बहाती
शाहजहाँ की सूखी बेनूर आँखों को देखा
जो यमुना को भी उदास कर गयी थी
पता नही कैसी पूरनमासी की रात होगी
जिसने अपने आगोश में मुमताज़ और शाहजहाँ
को लेकर
सारे कायनात को
पागल कर दिया होगा ..........
No comments:
Post a Comment