पीछे से आती तेज़ ठहाकों की आवाज़ !
मै थी कि गहरी नींद में डूबी जा रही थी
जैसे मुझे कितने दिनों बाद ये चैन की नींद
नसीब हुई हो
क्या रिश्ता था
नींद और ठहाकों में ?
शायद ये कवि -ह्रदय की निश्छल आवाज थी
जो हौले हौले थपकियाँ दे मुझे
सुला रही थी
बिना किसी शिकवे शिकायत ! .....
मै नींद की घाटियों में उतरती जा रही थी .....
और
सात अजनबी भाषाओँ को लिए बस सरपट
सड़कों पर दौड़ रही थी .........
( दिल्ली से आगरा कोच में )
Pichhe se aati tez thahakon ki awaj / aur mai gahri nind me dubi ja rahi thi / jaise mujhe kitne dino baad ye chain ki nind nsib hui ho / kya rishta tha nind aur thahakon me / shayd ye kavi hriday ki nishchhl awaz thi / jo houle houle thapkiyan de mujhe sula rahi thi / bina kisi shikve shikayt ke / ../ mai nind ki ghatiypon me utarti ja rahi thi ../ aur saat aznbi bhashaon ko liye bs sarpt sadkon pr doud rahi thi........
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