भगवन !
अहाँ तं मनुखक निर्माण केलों
तखन ई अमीर गरीब के बनौलक ?
जाति पाति, धर्म अधर्म क देवार
के ठाढ़ केलक ?
संबंधक इतिहासक पन्ना यांत्रिक युगक
बरखा मे गलि गेल अछि
भूख पिआस गरीबक मरि गेल अछि
पलास सँ आगि निकलि रहल अछि
हवा सँ बाण
रेतकण झुलैस रहल , वर्षा कें
अभिमान !
डोका कांकोर करमी पर जीवैत
देह पर फाटल चीटल वस्त्र नेने
की ओकरा अहाँ ह्रदय नहि देने छी ?
की ओहि मे इच्छा कामना
नहि अंकुरेने छी ?
आंखि मे सपना नहि जगौने छी ??
तखन किएक गरीब आर गरीब
भेल जा रहल..
गरीबीक अभिशाप अमीरी क वरदान
बनल जा रहल
की ओकर भगवन केओ आन छैथ
छैथ तं के छैथ ---अहीं बाजु.....
( भावांजलि सँ )
No comments:
Post a Comment