Manoj Kumar Jha
June 10
मित्रों, बचपन से ही मुझे पढने में मन नहीं लगता था, इसका मतलब ये नहीं कि मैं पढाई में कमजोर था, मतलब ये कि आज तक मैंने किसी किताब को आद्योपांत नहीं पढ़ा. चाहे वो पाठ्य पुस्तक हो, साहित्यिक उपन्यास हो या कोई धार्मिक पुस्तक. किन्तु मैंने मैथिली की महादेवी द्वारा रचित "किस्त-किस्त जीवन" को पूरा यानि आद्योपांत पढ़ लिया. लगातार नहीं, किस्त-किस्त में. इसके दो कारण हैं- (१) यह पुस्तक स्वयं महादेवी ने अपने हाथ से हमें उस समय भेंट किया था जब वो स्वल्प समय के लिए मेरे गरीबखाने में आयी थी, इसलिए इस पुस्तक से मेरा दिल ना नाता हो गया (२) इस पुस्तक से उस महादेवी के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत को जानने का मौका मिला जिसे मैंने बिना देखे-जाने अपना आदर्श मान लिया था. आज इस पुस्तक को पढने के बाद मेरी नजर में उनका कद और भी बढ़ गया है, यह पुस्तक मेरे लिए रामायण, गीता, वेद-उपनिषद, बाइबिल, कुरान-शरीफ या गुरु ग्रन्थ साहिब की तरह पवित्र है. मैं इसके दो-चार पेज रोज पढता हूँ और अपने आप को बडभागी मानता हूँ. ई पुस्तक हम्मर शक्ति रहत, दुर्बलता नहि, —
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