रो रही धरा रोता ये आकाश है , मानवता का कैसा ये ह्रास है
चुप रह कर हमने सज़ा बहुत ही पाई ,अब न रहेगी चुप ये भारत की नारी
सूरज पर भी कालिख पोता चाँद पर सच ही आज लगा कलंक है
क्या जानवर से भी गए बीते घूमता बर्बर निशंक है
किसी माँ के गर्भ से जन्म लिया होगा
किसी बहन के साथ खेला भी होगा
किन्तु आग लगी तन में अपनी ही माँ बहनों को शर्मसार किया
तुम सब ने अपनी ही माँ बहनों के साथ ऐसा दुष्कर्म किया
यह आदमी का काम नही इन खूंखार भेडियों को दूर करने हमने ठानी है
हम फूल नही चिंगारी हैं हम रुद्रानी शिवानी है
चुप रह कर हमने सज़ा बहुत ही पाई ,अब न रहेगी चुप ये भारत की नारी
सूरज पर भी कालिख पोता चाँद पर सच ही आज लगा कलंक है
क्या जानवर से भी गए बीते घूमता बर्बर निशंक है
किसी माँ के गर्भ से जन्म लिया होगा
किसी बहन के साथ खेला भी होगा
किन्तु आग लगी तन में अपनी ही माँ बहनों को शर्मसार किया
तुम सब ने अपनी ही माँ बहनों के साथ ऐसा दुष्कर्म किया
यह आदमी का काम नही इन खूंखार भेडियों को दूर करने हमने ठानी है
हम फूल नही चिंगारी हैं हम रुद्रानी शिवानी है
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