कुछ भी हाथ में आता है , मुठी से रेत की तरह ससर जाता है।..........
सोचती हूँ कुछ ,हो कुछ जाता है। कितना इम्तेहान लेगा भगवन तू !, एक घडी तुम पर विश्वास , हूँ घडी हो जाता है।.आस्ति नास्ति में डूबा मेरा मन ..हर सुबह कुछ नयी सी लगती है अगले पल सब कुछ बासी बासी ....सुबह होती है , शाम होती है ...उम्र यूँही तमाम होती है।.............
सोचती हूँ कुछ ,हो कुछ जाता है। कितना इम्तेहान लेगा भगवन तू !, एक घडी तुम पर विश्वास , हूँ घडी हो जाता है।.आस्ति नास्ति में डूबा मेरा मन ..हर सुबह कुछ नयी सी लगती है अगले पल सब कुछ बासी बासी ....सुबह होती है , शाम होती है ...उम्र यूँही तमाम होती है।.............
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