(मन की दुनिया )
आखिर कब तक ,कब तक आखिर तुम कौन हो ? क्यों आ आ कर मुझे तडपा जाते ? तुम्हे देखने के लिए कितनी बेकल हो उठी हूँ मै. कितनी छटपटा रही हूँ मै. ओ अदृश्य ! अब नही सहा जाता
कब तक यूँही भटकती रहूंगी , हर चेहरे में तुम्हारा चेहरा, हर छवि में तेरी छवि , हर स्वर में तेरा स्वर मुझे भरमा जाता है ऐसा एहसास वो तुम हो ..वो तुम हो..दौड़ जाती हूँ , एक मृगतृष्णा के पीछे...परछाही के पीछे भागती , दौडती.....
कोई भी दर्द भरा गीत गता है, कोई भी धुन कहीं से आती है लगता है तुम मुझे पुकार रहे हो पुकार रहे हो, मै विक्षिप्त हो जाती हूँ...मेरे जीवन की उषा बेला में भी ये ही पुकार मुझे छटपटा जाती थी..आज सांध्य बेला में भी...तुम कौन हो ..तुम कौन हो ??ए
चारो ओर रज़त चांदनी की तरह पानी का जाल बिछा हुआ है...घास सेवार पानी की लहरों पर , हवा के झोंको के साथ अंगेठी लेते थिरक रहे हैं. . जलघास के हिलते डुलते पत्ते जैसे मुझे बुलाने के तेरे संकेत ही ना हो जलघासों के बीच पानी में तैरती एक छोटी सी चिड़िया किनारे की तलाश में कभी सेवारों से बिंध जाती है तो कभी करमी लत्ती में उलझ जाती है. ...वो भी मेरी तरह ही किसी की तलाश में है, कितनी मजबूर ,कितनी दयनीय स्थिति है उसकी...कभी कभी एक एहसास होता है तुम मेरे बालों से खेलते निकल जाते हो ....'ऐसा लगता है किसी ढीठ झकोरों की तरह , खेल आयी है तेरे उलझे हुए बालों से....' तुम्हारे स्पर्श की अनुभूति में डूब डूब जाती हूँ , अधरों पर एक स्वर्गिक मुस्कान खेल जाती है , चेहरा अलौकिक आभा से उद्भासित हो जाता है..आँखें मूंद कितनी देर तक मै तुम्हारे सामीप्य की अनुभूति में डूबी रहती हूँ...और फिर सपना टूट जाता है , दुनिया मुझे अपनी निर्मम बाँहों में खींच लेती है....तुम कहीं नहीं ..कहीं नही...तुम मुझे छोड़ भी नही पाते, मै तुम्हे भूलना चाह कर भी भूल नही पाती , ये कैसे बंधन हैं, ये कैसे रिश्ते हैं..क्या सात जन्म इसी को कहते हैं..
एक दिन तुमने मेरी हथेलियों को चूमते हुए कहा था --लो मैंने तेरी हथेलियों को विश्वास से भर दिया है . तुम मेरा विश्वास करती रहना , ये हाथ अब अबल नही, बेजान नही . इसमें मेरे विश्वास
का नन्हा पौधा लगा है ..मै हर वक़्त तुम्हारे साथ हूँ , हर पल हँ-- तुम यूँही विश्वास और प्यार दुनिया को बांटती रहना..
मेरी हथेलियाँ ही नही मै पूरी की पूरी तुम्हारे विश्वास से भर उठी थी. सारा तन तेरे प्राण से अनुप्राणित हो उठा था , कैसी विडंबना थी मेरी भी ..नियति का अपना भी तो कुछ रंग होता है..तुम चले गए अपना विश्वास मुझे सौंप कर ..तुम फिर अदृश्य हो गए मेरी साँस बन कर ..आज लगता है की वो सपना था या सत्य ?? पर मेरी हथेलियों में लगे विश्वास का वो पौधा , मेरे आंसुओं से सिंचित हो आज विशाल वटवृक्ष बन गया है ..उसे कोई भी शक्ति उखाड़ नही सकती ..खुद तुम भी नही..पर मेरी आत्मा भटक रही है, मै थक गयी हूँ, दुनिया के सुरतालको मै समझ नही पाती हूँ , संगत बिठाते बिठाते हताश निराश हो उठती हूँ कभी कभी ..तुमने भी तो नही सिखाया और छोड़ गए मझधार में....................
तुम हो कहाँ..भटकती हवाओं का संस्पर्श तो पाती हूँ , पर तुम्हारी तरह ही अदृश्य ..इन मेघमालाओं में विचरने की पहचान तो मुझ में अंकित है ही पर वे भी तुम्हारी तरह दूर मुझसे काफी दूर...दुःख मेरा जीवन साथी बन गया है, नही , शायद मैंने दुःख को अपना लिया है, नही नही दुःख ने ही मुझे अपना लिया है.. पता नही किसने किसको अपनाया है , पर वो मेरा प्रियतम बन बैठा ,वो मेरी मुस्कान है , शायद इसीलिए तुम्हारी तलाश अभी भी जारी है ...तुम्हारी तलाश में दर्द ने मेरा साथ दिया , दुःख ने मेरा हाथ पकड़ा और मै तुम्हे खोजती रही ..पगले, ये कैसा अपनापन है , कैसी बेकली है....तुम्हे पता भी नही..तुम्हारी तलाश मेरी पूजा है , मेरा ध्यान है धर्म है....उस दिन स्कोट्लैंड में विचरती लगा अरे इन पहाड़ियों के बीच तुम छिपे हो..मै नगें पैरों ..........
.क्रमश; ---- ( मैथिली से )
nothing here S J , IT'S ONLY A HEART OF A WOMAN FULL WITH EMOTIONS N SENTIMENTS NOT WITH BLOOD N FLESH.....
ReplyDeleteTHANX ALOT
NIK LAGL APNA LG AHAN KE DEKHI.....ASHESH SINEH...