प्रीतक इजोरियामे अकुलाइत मोन बाद )
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सम्हरि क' देखलहुँ हुनक लिखल
"आखर आखर प्रीत !
युग युगक संयोगल करियौटी भीत
पारखी लोकनिक शब्द शब्दकें देखि
पतिया लिखब सीखल
जे मरणासन्न भ' गेल अछि
इंटरनेट आ मोबाइलक युगमे
प्रवेश क' क' सर्जिकाक अंतःकरणमे
निर्गुणक उन्नायक कबीरक आत्मा मुग्ध अछि
हुनकोमे जगौने छल आश
सांसारिक चेतनाक आभास
तखन ने ओ गेलनि पिरीतक अढ़ाई आखर
नहि छल एकांत मोन कातर !
एहिठामक अकुलाहट कोनो मृगतृष्णा नहि
निराकारक थिक साकार दर्शन
नहि चिन्ताक श्रीङ्ग चिंतन
एत' त' मात्र उतयोगक मंथन
दोसरक लिखल नेहक समूल संचयन
नहि अश्रु-उच्छ्वास
नहि हास परिहास
नहि धरती आ ने अकास
सम्पूर्ण ब्रह्माण्डमे हुअए पिरीत
तकरे त' छनि विश्वास
अचकेमे नहि किछु द' क'
बहुत रास क' देली उत्सर्ग
सरल नहि एहि पिरीतक अपवर्ग
किओ हँसथि रहथु हॅसैत
एकरे त' अछि उद्देश्य एहि सर्जनाक
ककरो कनायब बड्ड सरल
मुदा ! आत्मासँ हँसेबाक लेल चाही सामर्थ्य
विराट प्रेमक विवेचन उत्कृष्ठ
कोनो अर्थे नहि व्यर्थ !
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शिव कुमार झा टिल्लू ( डॉ शेफालिका वर्माक पत्रात्मक आत्मकथा पढ़लाक -
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शिव कुमार झा टिल्लू ( डॉ शेफालिका वर्माक पत्रात्मक आत्मकथा पढ़लाक -
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