Thursday, August 13, 2015

स्वाधीनता दिवस --??
परिवर्तन होते हैं किन्तु ,विकास के लिए,अच्छाई के लिए !..आज वैज्ञानिक,वैचारिक क्रांति से देश ही नही सारा विश्व गाँव बन गया है पर कभी हमने सोचा हम खुद कितने दरिद्र बन गये हैं .? हम अपने देश को क्या दे रहे हैं ? मुझे याद आ रहा है ..शायद ९० के दशक तक स्कूल में बच्चों की छुट्टियाँ नही होती बल्कि झंडोत्तोलन के लिए उन्हें बुलाया जाता . झिलिया बुनिया से जलेबी तक का सफर जनगण गाने के लिए बच्चों की टोली बनती थी ,जो स्कूल के बाद सारे दफ्तरों में उन्हें राष्ट्रीय गायन के लिए ले जाया जाता . एक जुनून सा रहता था बच्चों में ,जब टीवी नही था लोग रेडियो,ट्रांसिस्टर ओन रखते थे, सुबह से ही ..अय मेरे वतन के लोगो-- इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के -- वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हो -- इंसाफ की डगर पर बच्चो दिखाओ चल के ,ये देश है तुम्हारा ,नेता तुम्ही हो कल के . आदि .राष्ट्रीय गानों से देश की फिजा ही नही घर घर की दीवारें उत्साहित होती,उन्मादित रहती , बच्चे,बूढ़े जवानों में ,पढेलिखों से अनपढ़ों में भी ..इस देश का यारो क्या कहना ....
पर विकास के नाम पर सारी व्यवस्था ही अविकसित हो गयी है.. अभी भी समय नही बीता, जब जागो तभी सबेरा ..अभी भी सारे स्कूलों--कोलेजों में इस पावन त्यौहार को चाहे वो सरकारी हो या प्रायवेट कड़ाई के साथ लागू किया जाना चाहिए ,तभी बच्चे आगे चलकर इन्सान बनेंगे हैवान नही ,जिससे बच्चों का चरित्र निर्माण हो ,देश और देशभक्ति के जज्बा को समझे . लोग एक दिन पहले ही खानापूर्ति कर लेते हैं .किन्तु इसका प्रभाव नकारात्मक ही रहता है. जिस तरह से आज के ज़माने में माता पिता अपने ही बच्चों के घर में मेहमान बन के रह गये ठीक उसी तरह हमारे ये दो पावन त्यौहार हमारे देश में बस मेहमान बन कर रह गये ...ये कौन सा विकास ? कैसा परिवर्तन? राखी , दशहरा, सरस्वतीपूजा हरेक के गाने की जगह चिकनी चमेली,शीला की जवानी ने ले ली है..क्यो कि बच्चों को ये ही पसंद है और वे मानवता के गुणों को भूलते जा रहे हैं. भूलते जा रहे है केसरिया बल भरने वाला ,सादा है सच्चाई , ये हिमालय सा उठा मस्तक न झुकने पायेगा ............ ..
DEKHO KABHI BARBAD NA HOWE YE BAGICHA
ISKO HRIDAY KE KHUN SE BAPU NE HAI SINCHA ..

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