कितना मुश्किल है जिए जाना भी
जिंदगी की कैद मे साँस लेना भी
दिल के जख्मो मे भी आंसू निकल आये
खून के कतरों मे भी दर्द छलक आये
कितने अरमा से छुवा था मैंने गुलाबो को
उफ़ हथेलियों तक मे कांटे उभर आये
चल दिए तुम भी इस जहाँ से आह
दिल के वीराने मे कैक्टस निकल आये
यूँ गड़ती है कलेजे मे कभी याद भी तेरी
जैसे कैक्टस मे कोई फूल खिल आये
जिंदगी की कैद मे साँस लेना भी
दिल के जख्मो मे भी आंसू निकल आये
खून के कतरों मे भी दर्द छलक आये
कितने अरमा से छुवा था मैंने गुलाबो को
उफ़ हथेलियों तक मे कांटे उभर आये
चल दिए तुम भी इस जहाँ से आह
दिल के वीराने मे कैक्टस निकल आये
यूँ गड़ती है कलेजे मे कभी याद भी तेरी
जैसे कैक्टस मे कोई फूल खिल आये
वाह खूबसूरत बेहद उम्दा प्रस्तुति बधाई स्वीकारें खास कर ये पंक्ति तो लाजवाब है
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
कितने अरमा से छुवा था मैंने गुलाबो को
उफ़ हथेलियों तक मे कांटे उभर आये
thanx arun....
ReplyDeleteloved ur comnt...