जमीन का एक टुकड़ा मेरे हिस्से का मेरा अपना था
नितांत अपना।
साऱी इच्छाओं ,कामनाओं के बीज
मैंने रोप दिए थे उसमे
आंसुओं की धार से जिसे सींचा था मैंने
गेहूं धान उगाये थे मैंने किन्तु,
सभी उसे कुचलते रौंदते चले गए,,,,,
जमीन का एक टुकड़ा मेरे हिस्से का मेरा अपना था
जिसमे अपने विश्वास के बीज रोप थे मैंने
उससे अन्कुराए थे आशा के नन्हे नन्हे फूल
डाल डाल विहंस उठे थे
किन्तु अविश्वास और विस्मय से भरे अस्थिर मन
लोगों ने चूर चूर क्र दिए मेरे विश्वास को
मेरी आश को ,,,,,,,,,,
जमीन का एक टुकड़ा मेरे हिस्से का मेरा अपना था
रोप दिए मैंने सपने अपने
प्रेम व् स्नेह से कुछ अद्भुद कर दिखाने का
मानवता का संसार बसाने का .,,,,,,
आज समस्त विश्व मेरे सपने को आँखों में भर
सत्य शिव व् सुन्दर की ओर आगे बढ़ रहा है
मेरी जमीन
उर्वरा हो रही है,,,संतोष का वटवृक्ष फैलता जा रहा है।।।।।