पता नही कौन सी चीज ये उम्र होती है ! उम्र की सांध्य बेला में मै जहाँ डूबने की प्रतीक्षा कर रही हूँ, वहीँ मेरा मन मुझे वापस सपनो की दुनिया में ले जाता है, जहाँ मै अल्हड किशोरी की तरह खिलखिलाती रहती थी, हर बात पे ठहाका, हर बात का जबाब शेरो शायरी में हर किसी को. बिना डायलोग के जबाब ही नही देती थी..वो भी क्या दिन थे..मेरे आगे मेरे बच्चे,उनके बच्चे सभी खिलखिलाते रहते हैं, पर मै हूँ की उनके साथ रह कर भी अलग रहती हूँ, भीड़ के बीच भी अकेली..जब भी कोई गाना देता है बीते समय का,मेरी आँखों से आंसुओं की धार अपने आप बहती रहती है..मै उन गानों के साथ जीती रहती हूँ, मेरा वक़्त जैसे ठहर गया है , मै बड़ी हो ही नही पा रही हूँ उन दिनों की याद में, पुराने गानों को सुनते कलेजे में मीठी सी कसक होने लगती है. दुःख में भी सुख़ की अनुभूति, रंगोली मेरा प्रिय प्रोग्राम है जब पुराने गानों को देता है..कितनी बच्ची मै हो जाती हूँ, पर अपने आंसुओं को मै सब से छुपा लेती हूँ, जानती हूँ बच्चे मन ही मन जानते रहते हैं. पर मै उनके सामने कमजोर नही दिखना चाहती हूँ..मेरे इस दर्द को वही समझ पायेगा जो उम्र नही ह्रदय के साथ जीता होगा. और मै माँ के सामने प्रार्थना करने लगती हूँ-माँ मुझे भी बुला ले माँ..................
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