नै हंसी , नहि मुस्कान एत
लिय हम हारि गेलों
आब हम किछ नै
बाट पर पडल बोउल जकां छी
कुच्लैत क्च्लैत लोग चलि जायत
हमर सांस आब नै कुहरत
आब नै भटकत
हम पाथर छी
सबटा चोट , सब मौसम कें सहैत
वर्षा-आतपक बुन्न सहैत
हमर आत्माक आह आब नै पहुँचत
अहाँ धरि
हम
एकटा दीपशिखा छी
निष्कम्प , निर्वात
जरैत रहब मुदा
इजोत नहि द पायब
आलोक लोक नहि सजा पायब
तं हे हमर अप्पन !
अहुँ हमरा छोड़ी दिय -----
बाट क धुरि, पाथर सँ
प्रकाशहीन दीपशिखा सँ
अपन सांसक सरगम कें
मरघट में की बदलनाय
अपन जिनगीक बेचैनीक
बिना कारने ओहि कामना क गर
की घोंटनाइ ....................
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