विप्रलब्धा केर भूमिका
डॉ. केदार नाथ लाभ
श्रीमती शेफालिका वर्मा आधुनिक मैथिली कविताक पारिजात पत्र पर अंकित एकटा सिंदूरी हस्ताक्षर छैथ. जेना कारी कारी केश-जालक बीच श्वेत सिउंथ पर सिन्नुरक रश्मि-रेख अपन आलोक लोक सँ दीपित भ सहजहि सम्मोहक भ जायत अछि तहिना श्रीमती शेफालिका वर्मा अपन अंतर्मनक नील गगनक आर पार पसरल कोनो अतल-असीम वेदना व्यथाक घनखंडक मध्य अपन काव्यक रश्मि रागिनी आ ज्योति-ज्वार सँ सहजहि हिय-हारिल भ गेल छथि.
कला अथवा कविताक सम्बन्ध मे रोमांटिक धारणा ई छलैक जे ओ व्यक्तित्वक अभिव्यक्ति अछि. जखन रोमांस वादक विरुद्ध यूरोप मे प्रतिक्रिया ठाढ़ भेल तखन ई कहल गेलैक जे कला व्यक्तित्वक अभिव्यक्ति नहि प्रत्युत व्यक्तित्व सँ पलायनक क्रिया थीक . इलीयट एहि स्थापनाक अगुआ छलाह. , मुदा, व्यक्तित्व सँ इलियटक की आशय छलैक से वो स्वयम स्पष्ट नहीं केलनि , ओ मात्र इयाह कहलनि जे कवि के अपन व्यक्तित्व नहीं होयत छैक. . ओ मात्र प्लेटिनम क धातु जकां स्वयम अप्रभावित रहैत एक गोट माध्यमक रूप मे वस्तु -स्तिथि आ अनुभव कें तद्वत अभिव्यक्त क दैत छथि. कला अथवा काव्यक सम्बन्ध मे इलियटक जे मान्यता छनि ताहि कसौटी पर स्वयम इलियट क कविता सफल नहि मानल जेतनी आ ओ स्वयम अपना व्यक्तित्व सँ अपना काव्य-कर्तृत्व मे पलायन नहि क सकलाह से स्पष्ट भ जायत.
इलियट क अपेक्षा भारतक रवि बाबु आ मोहम्मद इकबाल दुनू गोटे कलाक सम्बन्ध में स्पष्ट चिंतन करैत कहने छैथ जे कला व्यक्तित्वक अभिव्यक्ति अछि. मुदा, इकबाल क दृष्टि में व्यक्तित्वक अर्थ अछि जीवनक दुःख- दैन्य, निराशा,पीड़ा आ ताप-संताप में संघर्षशील रहब. संघर्ष, सिमसिमाह आ अकर्मण्य व्यक्ति के इकबाल व्यक्तित्व-रहित मनैत छलाह , अर्थात इकबाल क कला-दर्शन तोल्स्तोय क कला-दर्शनक समकक्ष छल.
रवि बाबु सेहो कला कें व्यक्तित्वक अभिव्यक्ति मानैत छलाह .हुनका दृष्टिये व्यक्तित्वक अर्थ संघर्षशीलता नहि छल.. ओ कला में उपयोगिता के महत्व नहि दैत छलाह .उप्योगिताक सतत संधान एक गोत पाशविक प्रवृति थीक . मनुष्य पशुधर्मी नहि अछि. कला मनुष्यक कोनो भौतिक उप्योगिताक पूर्ति नहि करैत अछि . ओ मात्र मनुष्यक अन्तःकरण क सौन्दर्यानुभूति , हर्ष-विषद,आशा, निराशा ,सुख़-दुःख,हास-अश्रु आदिक सहज अभिव्यंजना थीक. कला मनुष्य कें ओ भूमिका प्रदान करैत छैक जाते मनुष्य अपन आतंरिक ,रागात्मक स्वरुप अथच निष्कलुष व्यक्तित्वक प्रकाशन करैत अछि.
एहि दृष्टिये शेफालिका वर्मा क परिगणना ओहि स्कूल में हेतनि जकर विचार-धारणा श्री रविन्द्र नाथ ठाकुर प्रतिपादित करैत छैथ. वस्तुतः कला अथवा काव्य कविक मानसिक विलास अथवा बौधिक व्यायाम नहीं होइछ आ ने ओ कविक नैतिकता अथवा समाज शाश्त्रीयताक दार्शनिक अभिव्यक्ति होइत अछि. ओ त मात्र कविक विवशता थीक . कलाक माध्यम स कलाकार अपन शुद्ध व्यक्तित्व के निर्वस्त्र क दैत अछि , कविताक माध्यम स कविक अंतर्व्यक्तित्व निर्वसन भ जायत छैक. एक हद धरि कविता कवि क व्यक्तित्वक कृत्रिम खोल उतारि क ओकर रग रगक पारदर्शी रूप सभक समक्ष प्रस्तुत क दैत छैक.
प्रस्तुत कविता संग्रह ' विप्रलब्धा ' में संकलित कविता सभ शेफालिका जीक व्यक्तित्वक निरभ्र पारदर्शी रूप के हमरा सभक समक्ष सम्पूर्ण चारुता आ मनोग्यता क संगे प्रस्तुत करवा में सफल - समर्थ सिद्ध भेल अछि . ओस-विन्दुक अलस भार सँ सज्जित कमल-दल जकां ई कविता संग्रह हिनक वैयक्तिक अनुभूति राशि क कोमल,करुण ,सजल-तरल, सुकुमार संभार सँ सहजे रमणीय आ तलस्पर्शी भ गेल अछि . हिनक भाव बोधक क्षितिज अभिनव कलात्मकता क अरुणाभा सँ रंजित अछि. कथ्य्क संगे अभिव्यंजना क चारूत्व ,रूप-विधांक सौश्ठव आ चित्र धर्मिता जतवे चाक्षुष अछि ततवे भास्वरो. .
शेफालिका जी गीत अगीत ( मुक्त वृत्त में प्रणित काव्य ) दुनू प्रकारक काव्यक प्राणवंत कवयित्री छथि. हिनक काव्यक संसार गहन संवेदनाक माटि पानि सँ नमनीय आ रस-स्निग्ध तथा निश्छल अनिरुद्ध अभिव्यक्तिक सहजता सँ सुकुमार आ सुवासित अछि. हिनक काव्य में ' स्पर्शक गन्ध ' आ गंधक अनुभूति' अछि. एते 'आँचर में इन्द्रधनुष उतरल' अछि, कामनाक छाउर ' तथा ' मृत्युक महक पसारैत ' अछि. . कतहु 'देहरि क पार सखी ..' क दृश्य अछि ' 'कागा क स्वर सुनि खनकी गेल ...' क झंकृति , ते कतहु ' अश्रुपूरित आंखि सँ ' प्रियेक आरती उतारल गेल अछि. . इयाह मांसल आ सूक्ष्म अनुभूति शेफालिका जीक कविता के मानवीय स्वरुप प्रदान करैत अछि. ..एते 'अस्थि चर्ममय देह मम ता सन ऐसी प्रीति कहि देहक निरादर आ उपेक्षा नहीं कायल गेल अछि बल्कि देह के प्रेम के जन्मभूमि मानि कवयित्री अनुभूतिक स्तर पर स्वयम विदेह भ जायत छथि. आ तैं हिनक कविता मोन में एकटा अव्यक्त आह्लादक झंकार उत्पन्न करैत अछि. आ अपना सँ तादात्म्य स्थापित क हमरा सभ कें आत्मिय्ताक सुरभि में लपेटी लैत अछि.
शेफालिका जीक कल्पनाक ' स्कायलार्क ' हिनक व्यक्तित्व आ अस्तित्व क युगल पांखिक आश्रय ल क बरसाती सांझक कोनो असीम-निस्सीम उदास नीलाकाश में उडैत रहैत अछि जतय आशा क सतरंगी इन्द्रधनुष उतरि 'क्षण पर क्षण कपूर जकां ' उडैत रहैत छैक.. ओहि 'क्षन क ' अस्तित्वक चेतना शेफालिका जी कें वायवीयता सँ हटा क मानवीयता क धरातल प्रदान करैत अछि. आ हुनक अनुभूति हमरा सभक अप्पन अनुभूति भ जायत अछि. नितांत अप्पन....
अहाँक वचन 'हम आयब'
हमर आँचर में इन्द्रधनुष उतरल
सतरंगी भावना में मोनक रस रूप पसरल
आ क्षण पर क्षण कपूर जकां उडैत रहल
कैलेण्डर क पन्ना फाटैत रहल .........
जाहि सत्यक संगे कवयित्री अनुभूतिक स्तर पर एकतान होइत छैथ तक्र रागात्मक अभिव्यंजना में ओ मोरपंखी सौन्दर्य उत्पन्न क दैत छथि . ......
अहाँक ई हंसी
ओह जेना लक्स क पौडर छिरिया गेल चारु क़ात
उज्जर उज्जर , निर्मल निर्मल
अथवा
अहाँ गेलों हमरा सँ दूर बहुत दूर
हमर गीतक ठोर पर फुफ्ड़ी पड़ी गेल
हमर खिस्साक अंतर मे बरछी लागि गेल ..
अथवा
हमर नस नस मे दर्दक सागर लहरायल
जखन ह्रदय डूब लागल
दर्द पिपनी क ठोर पर छलकी आयल
एहिठाम उपमान क नव्यता - भव्यता आ ठेठ शब्दक चयन अनुभूतिक सम्प्रेष्ण मे कतेक सफलता भेटल छैक से सहज द्रष्टव्य अछि .
मुक्त छंद मे रचित अपन कविता मे जेना हेफालिका जी नव -अभिनव उपमान आ चित्रधर्मी शब्द-वितान सँ अपना भावक रूप-विन्यास करवा मे सफल सिद्ध भेलीह अछि तहिना अपन गीत सब मे सेहो ओ एकटा विलक्ष्ण मार्दव आ सौकुमार्य प्रस्तुत कय्लनी अछि,. हुनक गीत मे नारी सुलभ भावनाक स्वच्छ-स्फटिक अभिव्यक्ति भेल अछि. . हिनक प्रानक अतलता मे सुकुमार भावक जे मधुरिमा आ कमनीयता अपन प्रकाश विकीर्ण करैत अछि टकरा तद्रुपे रमणीय शब्दावली मे प्रस्तुत करवा मे ई समर्थ छथि. ई अपन उत्फुल्ल वयसक बासंती उमंग , प्राणोत्सर्ग, मिलनौत्सुक्य, विरह-दंश , विवशता, करुना ,उदासी आ पीड़ा आदि भाव-राशि क वर्णन बड्ड मार्मिक रूप मे करैत छैथ. यथा..
बासंती नूतन उमंग सभ
शांत भेल अछि, ह्रदय उदास / सभ इच्छा पीड़ा बनी उर मे
बैसी गेल अछि ज्वलित तरास....
अथवा...
स्वांसक हिडुला बजबय प्रिये के / उत्सर्गी दृग नोरे तीतल
प्राण छुटि पओत नहि पहु के / की ने जुडाय्त कहियो हीतल.........
ई कहब आवश्यक नहि जे मैथिली काव्यक विशाल व्यापक संसार मे अनेक कवियत्री उत्पन्न भेलैथ जिनक काव्य सुरभि सँ ई संसार सुरभित अछि , मुदा श्री मति शेफालिका वर्मा सभ सँ फराक सर्वथा एकटा पृथक विलक्ष्ण आ अनुपम स्थान बनौलानी अछि..
नारी-हृदयक सघन गहन वेदना क भग्न हृदयक आकुल चीत्कार , असीम अगोचर लेल विफल प्रणय निवेदन ,आकुलता क मर्मभेदी हूक आ टीस क जेहेन विलक्ष्ण विवृति हिनक काव्य मे भेल अछि से हिनका एक अर्थे ' मैथिलीक महादेवी ' प्रमाणित करैत अछि . एहि काव्य प्रकाशन क अवसर पर तैं हम मैथिलीक एहि महादेवीक हार्दिक अभिनन्दन करैत छी आ आशा करैत छी जे हिनका मे मैथिली काव्यक विकासक जे अनंत संभावना अछि से मुकुलित होई...
राजेंद्र कॉलेज , छपरा , बिहार....१९
मैथिलीभाषी होते हुए भी मैथिली में न लिख पाने के लिए क्षमा सहित ये कहना चाहूंगा कि शेफालिका जी को जितना पढ़ा है उस आधार पर कह सकता हूं कि इनकी रचनाओं की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर जाते हैं।
ReplyDeleteMK.. sochti hun jo kuchh jivn me reet gaya, jo beet gaya un sb ko aap sb ke hawale kr jaun, us daur me jinhone mujhe pasand kiya , unki baton vicharon ko awgt kara skun sb se..viprlabdha ki prati nhi rahne ke karan..bs jo hai chup raha, unkaha..kah rahi hun..aap pratikriya dete hain ,bada achchha lagta hai....apke blog se apke antarmn ko jana varna vahy parichay ko parichay mai nhi manti.....
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