मन की दुनिया
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मेरे अंदर स्थित नन्ही शेफाली अलग से खाती पीती है. उसका एक अपना जीवन है . वह लोगो से घिरी रह कर भी नितांत अकेली रहती है . अकेलेपन में भी किसी का सामीप्य महसूसती है. और फिर रात रात भर जागने की यह आदत ! एक एहसास है जो मुझे सोने नहीं देता .
मै लेखिका हूँ, कवयित्री हूँ , कभी कभी लिखते लिखते मुझे लगता है जैसे सारे शब्द हांफ रहे हों , सारी पंक्तियाँ सिसकियाँ भर रही हो और सारे अक्षर उसांसें ले रहे हों , उफ़ ये कैसी अनुभूति है न तो जीने देती है न ही मरने . ऐसा लगता है जैसे कहीं कोई मेरे लिए रो रहा हो. तडप तडप कर मुझे पुकार रहा हो . मेरी आत्मा उस अनदेखे के लिए विकल हो उठती है . मेरा कलेजा मेरी मुठी में आ जाता है एक घाव की तरह , सीने में एक जख्म की तरह ...मेरे ईश्वर ,मेरे खुदा ..ये कोन सा रोग मुझे लगा दिया...जिन्दगी का रोग .......
.........और उस दिन का सपना --जिसने मेरी जिन्दगी के दर्द को और भी लहूलुहान कर डाला वह सपना जैसे मुझे तोड़ गया ---------------------------------------------------
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मैंने अपने चतुर्दिक फैली अनंत ,अथाह जलराशि को देखा ,एकबारगी मै विमूढ़ सी रह गयी ,मेरे हाथ विवश से उठे जहाज को संकेत देने के लिए .मेरी जुबान लडखडाई पर शब्द एक भी बाहर नहीं आया.. बीच सागर में निर्वाक , निस्तब्ध दीपशिखा सी कांपती अकेली -- नितांत अकेली...
मैंने अवश नजरों से जाते जहाज को देखा और जहाज मेरी नज़रों से ओझल होता रहा . --------------------और एकाएक मेरी जोरों की चीख निकल गयी . मेरी ऑंखें खुल गयी . मेरा सारा बदन थरथरा रहा था ,मेरी साँसे जोर जोर से चल रही थी , मेरा सारा तन पसीने से लथपथ -----आज तक मै अपने इस सपने का अर्थ खोजती रही , क्या ये ही मेरी नियति है..क्या लोगों के बीच रह कर भी वे मुझे अलग कर देंगे ..क्या ये मेरी जिन्दगी है ..???
इस सपने ने मेरे सारे जीवन को आंदोलित कर दिया ... सोचती हूँ मेरी आँखें तभी क्यों खुली ?? मैंने ये क्यों नहीं देखा कि विभ्रांत सी मै अपने आपको उन लहरों के निमंत्रण में समर्पित कर बैठी. ?? मै आप से ही पूछती हूँ ..आखिर इस सपने का अर्थ क्या है ? शायद मेरी बेचैनी को चैन आ जाये..याद आते ही उस कंधे की तलाश करती मेरी ऑंखें कब लगी......
Translated from Maithili
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