आशीर्वचन
प. हरिमोहबं झा
सौ. शेफालिका वर्मा के हम तहिये स जनैत छियेंह जहिया ओ दस-ग्यारह वर्षक बालिका छलीह . हुनक पीता ( बंधुवर श्री ब्रजेश्वर मल्लिक ) , ओ यदा कदा अपन रानीघाट लग निवास मे निमंत्रण देत रहैत छलाह ( जाहि मे षटरस ओ नवरस दुहूक समावेश रहैत छलैक ) . साहित्य गोष्ठी क परिसमाप्ति 'मधुरेण ' होइत छलैक.
ओही माधुर्यमय वातावरण मे मेधाविनी कन्याक प्रतिभा संस्कार विकसित होइत गेलैन्ह...आई ओ एक सुकुमार शब्द-शिल्पिनी कवियत्री -लेखिका क रूप मे विख्यात छैथ. हम हुनक 'स्मृति रेखा ' मे मर्मस्पर्शिनी भावुकता देखि शुभकामना प्रकट केने रहियेंह जे एक दिन ओ 'मैथिली क महादेवी ' रूप मे प्रसिद्द हेतीह, आय हुनक 'विप्रलब्धा मे भावनाक कोमलता करूँ रस्क परिपाक देखि ओ आशा पल्लवित भ गेल अछि. 'शेफालिका' अपन नाम सार्थक करैत निरंतर सिंगारहार क माला गुंथी वाणी देवीक मुकुट पर अर्पित करैत रहथु, इयह आशीर्वाद देत छियेंह ..
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टिकिया टोली ,पटना मिति १७. १२. '७७
मंगलकामना
मणिपद्म
श्रीमती शेफालिका वर्मा स्वयं साकार 'विप्रलब्धा' छथि . भावनाक एकटा सहज सिहकी मे हिनक अश्रु विन्दु जे झहरी जायत छैन्ह ताहि मुक्ता स सज्जित आखर मे ई कविताक फूल अंकित करैत छथि. .एकटा कलामयी मैथलानी , एकटा सिस्कैत कवियत्री आ एकटा भावभिजल व्यक्तित्व हमरा बंगलाक सुप्रसिद्ध कवियत्री अरुदत्त आ तरुदत्त क झांकी भेटे लागैत अछि हिनक पाती सब मे ..
आर अधिक सफलता ,आर अधिक मंगल कामना क संगे..
बेहडा , १४. ७ ७७
शुभासंसा
डॉ. सुधाकांत मिश्र
अंतिम साँस सँ पहिने आस रहैत छैक ,जे कोनो आसरा भेटे ,ओ साँस जे जा रहल हो , तं रुकि जाय. तहिना मैथिली क महादेवी ( हरिमोहन बाबुक शब्द मे ) एहि संग्रह सँ मैथिली क दुबैत आस कें निश्चय बचा लेलनि. ची. शेफाली मैथिली लेल आय केवल हस्ताक्षरे नहि, महत्वपूर्ण दस्तावेज छथि . हुनक विप्रलब्धा ,जे हुनक चुनल आ प्रिय कविताक प्रथम संग्रह थीक ,सँ प्रत्येक पाठक पठिकाक आंखि नोरा जेतान्ही . शब्द कें पीड़ा के माध्यमे उद्घोष करब ओ पीड़ा कें पुनः शब्द मे आनब सोझ अग्निपरीक्षा नहि . हमरा हर्ष अछि जे शेफाली एहि अग्नि परीक्षा मे सवा सोलहो आना खरा भेल छथि !
हम एहि कृति क स्वागत करैत सहर्ष मैथिली क विशाल पाठक वर्ग कें समर्पित करैत छी. पीड़ा सँ मधुर रचना कोनो नहि , पाठक सँ बढ़ी रचनाक निर्णायक केओ नहि . सहृदया ओ ममतामयी शेफाली जीवनक रंग विरंगी चित्र मे पिदाक स्वर अनने छथि. ........
मंत्री,मैथिली अकादेमी, इलाहाबाद , मिति-१३. ७. '७७
अभिमत
आरसी प्रसाद सिंह
श्री मति शेफालिका वर्माक हस्ताक्षर मे मैथिली क एकटा एहन कवयित्री क उदय भेल अछि जे थोड्वे काल मे साहित्य-जगत पर अपन प्रभाव जमा नेने छथि. .हुनक कविता संग्रह 'विप्रलब्धा' के देख्वाक अवसर हमरा हस्त्लेखे रूप मे भेटल छल, जखन हम कोनो कवि गोष्ठी मे सम्मिलित हेवा लेल सहरसा गेल छलों . मंच परक भीड़ भाद एवं अस्तव्यस्तता रहितो जे किछु उनता पुन्टा के देखल फेर कवयित्री क मुंह सँ सुनल से मोन मुग्ध क देलक . शेफालिका जीक कविता मे नवीनता क संग संग मौलिकता अछि. . समाजक बदलल परिवेश मे वर्तमान व्यक्ति केर मनोदशा , भावना एवं अनुभूति जाही प्रकारे प्रभावित भेल अछि से विप्रलाब्धाक कवयित्री द्वारा एकदम आधुनिक सन्दर्भ मे वाणी पाओल अछि. से ग्रंथक नाम विप्रलब्धा कोनो रीतिकालीन अतीतक खाहे जतेक विज्ञापन करओ ,मुदा ओकर प्रत्येक रचना अपन एक एक पाती मे युग बोधक अदम्य स्वर झंकृत क रहल अछि. की भाषा ? की भाव? दुहु मे शेफालिका जी क परतरी नहि ! प्रेम-प्रसंग पर हुनक चुटकी ,व्यंग..दाम्पत्य जीवन सँ प्रेरणा ग्रहण करितो कतेक असम्पृक्त भ जायत अछि--से केओ मर्मी व्यक्ति सहजही ब बुझि सकैत अछि . काव्यक सरसता राखैत किछु एहेन बात कही देब ' जे अजगुत लागय---एकाएक चौंका दिय से शेफालिका वर्मे स भ सकैत अछि
भरल पुरल परिवार, छः संतान के जन्म देनहारी आ तेन स्वास्थ्य सँ दुर्बल, पेशा सँ वकील पाती के सब तरहे सुखी करैत ,नगर आयुक्तक पदभार ग्रहण करैत ..आ कोना काव्य रचना क लैत छैथ ? कोंन तरहे गुनगुनेवाक समय निकाली लैत छैथ ? गृहस्थी क जाहि मरुभूमि मे कतेक कवि-कवयित्री क रस श्रोत सुखी गेल , ताहि प्रपंच मे कोना हुनक कवि ह्रदय मात्र जीविते नहि - सरसता आ वचन-विदग्धता क प्रचार प्रसार क रहल अछि से वास्तव मे अभिनंदनीय , बारम्बार वन्दनीय अछि.
'विप्रलब्धा' क प्रति सामने प्रस्तुत नहि रहने कोनो कविताक पंक्ति उधृत क हम केकरो हठात चमत्कृत करवा मे असमर्थ भ रहल छी. किन्तु प्रबुद्ध पाठक सँ आशा राखैत छी जे स्वयम हमर उक्ति क यथार्थता मे प्रवेश क सत्यासत्य्क निर्णय एवं काव्यक रसानुभूति --दुनु एक संग अनुभव क लेतः . ओना मिथिला मिहिर ६ जुलाई १९७५ केर अंक मे प्रकाशित 'एक भावना' आ 'इजोरियाक भाषा' शीर्षक कविता शेफालिका जी क शैली,भाषाक ओ उदाहरण पेश क रहल अछि जे कहवाक हमर अभीष्ट अछि. हम शेफालिका जी कें ई शुभकामना करैत ई अभिमत समाप्त का चाहैत छी जे ओ एहिना मैथिली क मंदिर मे नव नव उपहार देत रहथु , जाहि सँ यदा-कडा हमरो भारती -भक्त लोकनी के सरस प्रसाद भेटैत रहे.
अंत मे एकटा सब सँ मधुर बात आ हमर कथन शेष ! शेफालिका जीक स्वयम अपन मुंह सँ कहल --गोष्ठिय मे - हमरा तं पहिनो सँ बुझलो नहि छल. . से हुनक नाम शेफालिका क उत्प्रेरक सन्दर्भ. तखन हमर एकटा कविता शेफालिका शीर्षक कविता प्रकाशित भेल छलैक. आ लागले कवयित्री क जन्म होइत छान्ही. पिटा साहित्य-प्रेमी, तेन, स्वाभाविके जे अपन नवजात कन्या केर नाम ओही कविता पर शेफालिका राखी देलनि . एके संग ओ कविता आ ई कन्या दुनु सर्र्थ्क भ गेलीह . आ देखू सरस्वती क कृपा बालिका भ गेलीह कवयित्री भावुकता सँ भरल , ममता सँ ओत-प्रोत ; आ हमर ओ कविता एकटा जिवंत काव्य-प्रतिमा मे रूपांतरित भ गेलीह. ई केकर सौभाग्य ??
९.७.'७५
अपनी ओर से
ईश्वरी प्रसाद, भा. पर.से. आयुक्त ,सहरसा
श्रीमती शेफालिका वर्मा से मेरा परिचय सहरसा आने पर ही हुआ . यहाँ ही मुझे उनके गीतों को पढने और सुनने का अवसर मिला.
यद्यपि उन्होंने हिंदी मे भी कवितायेँ लिखी हैं किन्तु उनका प्रधान काव्य क्षेत्र मैथिली ही रहा है. . 'विप्रलब्धा' उनके द्वारा लिखे गए मैथिली गीतों का एक अनूठा संकलन है. वास्तव मे यह एक संवेदनशील , कोमल आत्मा के घायल गीतों का संग्रझ है. वेदना ही इनके काव्य-यात्रा का पाथेय है और मैथिली की उदीयमान कवियत्री अपनी भावनाओं का अर्द्धदान , उन्ही के शब्दों मे ..
'उरक पीड़ामय नव- मन्दिर मे
समर्पित पूजाक ई शतदल ,,,'
द्वारा कर रही है .
विप्रलब्धा मे गीत तथा स्फुट काव्य हैं तथा है इनमे लोकगीतों का स्वर एवं आनंद. . किन्तु इन सब की चरम परिणति रहस्यवाद मे ही हुई है. मन की सीमा के भीतर स्मृति से विह्वल अंतर तन की करा मे तडपता न रह जाये अतः विप्रलब्धा आत्मा की दुर्लंघ्य सीमाओं को पर कर असीम के निस्सीम प्रेम के लिए तड़प उठती है.! इसीलिए तो ये कहती हैं...
प्रिये नहि आयल नाहीये आयल
दीप-आरती बारल रहले ..
या फिर वे कहती हैं
केलों प्रेम हमर स्वीकार ----
हम रही छलौं भटकल / पाबी नहि सकलौं मंजिल
मोंक पंछी उडी उडी थाकल / साँस तान डहल तिल तिल ,..
कवियत्री की संवेदनशीलता अनंत विस्तार रखनेवाली एवं भावों का सूक्ष्म निरिक्षण करनेवाली है. इस लघु गीति-काव्य मे प्रगाढ़ स्नेह एवं करुना , सुख की स्मृति एवं विरह की दारुण पीड़ा ---दोनों का संगम आदि से अंत तक चलता है जो बहुत ही मनोहर है.
इन पंक्तियों मे कितनी करुना है....
अहाँ हमरा सँ प्रीत नै क सकैत छी
नै करू
हमर सोच कें जीवन नै द ' सकैत छी नहीं दिय'
काँटों मे गुलाब मुसकैत छैक
मुसकाय दियोक
यानी हम जहिना जीवित छी
जिव' दिय'..
इनके गीत विकल निर्झरनी के समान प्रिय के संधान मे गुंजित हो उठता है , जैसे
मुठी भरी सिंगारहार
छिरिया गेल चारू काट
एकटा हंसी अहाँक
सपन भेल स्वर्ण प्रभात......
ओह! ई सिंगढ़ारी हंसी / आ कैक्तास्क जिनगी
काँट भरल गुलाब नेने / मुसकाय रहल फुनगी..
-------------------------ये पंक्तियों सुधा-स्नात हैं , इन्हें मैंने बार बार पढ़ा है. तथा इनसे आनंद तथा रस उठाया है. 'नवगति', 'नवल-तालछन्द' नव, ' लेकर चलनेवाली यह रचना अभिनव उपमाओं को प्रस्तुत कर कवयित्री की प्रौढ़ता , वग-विदग्धता एवं कल्पनातीत कल्पना का परिचय देती है. जैसे
अपन सोचक बेडिंग दिमागक कम्पार्टमेंट मे
रिजर्व बर्थ पर देत छी पसारि
कल्पनाक रंग विरंगी बिछौन
बेडिंग मे स गेल बहिराय......................
श्रीमती शेफालिका वर्मा का यह प्रथम पुष्प जो अपनी कमनीयता , रमणीयता , वर्ण एवं सौरभ मे अनुपम है , रसग्य पाठकों को समर्पित है . कवियित्री का विश्वास है ..
कख्नाहूँ देखब देखी लेब
अपन छवि हमर उर-दर्पण....
हमारी शुभकामना है कि मैथिली काव्यकृति पर प्रस्फुटित रस फुहारों मे भीनी स्नेह-सुरभित शेफालिका जी के पुष्प राशि राशि बिखरें.....
शुभेच्छा
डॉ. रामकुमार वर्मा
अखिल भारतीय मैथिली सम्मलेन, इलाहाबाद मे कवियत्री शेफालिका की प्रतिभा से मै जितना प्रसन्न हूँ उतना ही चकित भी हूँ. इतनी छोटी अवस्था में उन्होंने साहित्य में जो अंतर्दृष्टि पायी है वह उनके स्वर्णिम भविष्य की अग्र्सुचिका है. . उनके काव्य संग्रह 'विप्रलब्धा' का भावोत्कर्ष आज के नवयुग के कवियों के लिए अनुकरणीय है.
सम्मलेन के अधिवेशन में उन्होंने एक सर्वोत्कृष्ट सम्मान भी अर्जित किया, उन्हें डॉ. उमेश मिश्र स्मृत स्वर्ण-पदक से आभूषित किया गया . उनकी काव्य-प्रतिभा भविष्य में और अधिक सम्मान की अधिकारिणी होगी , इसमें कोई संदेह नहि.
मेरा उन्हें हार्दिक आशीर्वाद है की वे भारतीय साहित्य और संस्कृति में योग देकर और भी बड़े सम्मान और अलंकरण प्राप्त करें और हमारे देश और साहित्य को उं पर अभिमान हो..
साकेत. इलाहाबाद-२
२४.१२. ७८..