फिर क्यों लिखने की मजबूरी ????.........
चाय देती बहू ने कहा 'मम्मी जी
कितना लिखती रहती हैं आप
इतनी किताबें लिख चुकी
जितना नाम होना था हो चुका आपका
अब आप जिन्दगी को जीने की कोशिश कीजिये
हम सब के साथ सिनेमा चलिए
होटल चलिए
बच्चों के साथ हंसिये बोलिए ..............
मेरी कलम रुक गयी
जिन्दगी का एक नया पन्ना खुल गया
अधूरी पांडुलिपियों को देखती रही
क्यों मै व्यर्थ लिखती रहती हूँ..
सच तो है अब पढने वाले ही कहाँ रहें
मै किसके लिए लिख रही हूँ...चाहने वाले मेरा नाम देख
खुश हो जाते हैं
बिना पढ़े भी लाइक कर जाते हैं...
प्रेम ही तो चाहिए ...भरपूर मिल रहा है......
फिर क्यों लिखने की मजबूरी ????.........
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