छन छन कर आती रही
मेरी लेखनी बेजान पन्नो को रंगती रही
किसी ने कविता तो किसी ने कहानी समझी
पर
मेरी जिन्दगी में जो तेरी यादों के घुन लग गए
उसे चुनने वाला कोई नहीं
मेरा अंतर रोता रहा
मेरी उहा तडपती रही
पर लोगों ने कविता को 'ट्रेजिक' जाना
कहानी को दुखमय
किसी ने मुझसे कुछ पूछा नहीं
जिसने अंगारे चुन चुन कर अपने
तप्त अंतर को और भी
आतप्त किया
जीवन में वेदना का श्रृंगार किया.....
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