सागर में आगि बिजली आसमान में
बेचैनी कत ' जे अछि हमर प्राण में
दिन एहनो आयल हमर जिनगी में
बुझलों अप्पन मिलल छल आन मे
की देखि रंग ढंग जिनगीक हुनक
रूप बदलैत छन छन आसमान मे
नीव पडल नोरक धार पर जकर
खसैत रहल सदिखन महलक सान मे
के पुछि आओत उपरवाला सं जाय
बना' कें मेटेनाय कोन विधान मे
ओ संग संग हमर चलि तं रहल छथि
मोन भटकल छन्हि कोनो ध्यान मे
गीत शेफाली क दिलक आगि थीक
बुझि नहि पवैत छथि नशाक तान में !!!
No comments:
Post a Comment