19 53 में बच्चों को मेट्रिक में सारे विषय पढने होते थे. '58 के करीब साइंस आर्ट्स चुनने का मौका मिलता था . कौलेज में वही I A --B A की २--२ साल की पढाई .. 81 में अचानक थ्री इयर्स डिग्री कोर्स की पढाई शुरू हो गयी . इंटर का एक साल मेट्रिक में जुड़ गया और वो बोर्ड परीक्षा हो गयी . इससे विद्यार्थियों को क्या फायदा हुआ ये तो भुक्तभोगी बच्चे और फ़ीस भरते माँ बाप ही जाने . . पहले बीए करके प्रतियोगिता परीक्षा होती थी . अब बोर्ड के बाद . ये एक सुविधा मिलि.. .. हाँ स्कूल के नन्हे बच्चों के कन्धों पर भारी बस्ता हजार विषय पढने का आदेश .. एक तो युंही टीवि ., कम्पुटर की अपसंस्कृति ने बच्चों से उसकी मासूमियत छीन ली तो दूसरी और पढाई के बोझ से अधरों की मुस्कान छीन गयी . कंधे के बोझ से जवान होते होते कितनी बिमारियों से आक्रांत हो जाते ये बच्चे। फिर एक नयी बात . केजी से ही बच्चों को प्रोजेक्ट वर्क करने की हिदायत . आगे क्लास में तो इतना कठिन और खर्चाऊ है की स्कूल के टीचर भी परेशान हम क्या करें ऊपर से ही आदेश आते हैं । ये ऊपर कौन है ... ! .. पेरेंट्स बेचारे प्रोजेक्ट का सामान खरीदते खरीदते दाल चावल भूल जाते हैं ....
अब महाविद्यालयों का हाल . दो साल के कोर्स से तीन साल .. पहले सेंट अप परीक्षा होती थी अब ४--४ सेमेस्टर होने लगे. बच्चे एक परीक्षा देते नही कि दूसरी की तयारी शुरू कर देते .. टीचर प्रश्न पत्र सेट करते सिलेबस तुरत तुरत बनाते परेशां ... टीचर जहाँ कि बच्चों के चरित्र निर्माण में घर के बाद वो ही सहायक होते थे ..कुछ लोगों के चलते टीचर कम्युनिटी बदनाम हो गयी . ये पढ़ाते नही भागे रहते है।क्लास हो या न हो ४ घंटे बैठे रहो … देखते देखते सारा दिन बैठने का आदेश मिल गया यानी समाज की प्रबुद्ध , बुद्धिजीवी कम्युनिटी को सारे देश की राजनीति पर , ,सरकार बनाने मिटने के लिए बातें करने का इससे अच्छा प्लेटफार्म अब क्या हो सकता है… ??इतना ही नही पहले पीएचडी करो तब टीचर बनोगे , फिर नेट करो इस तरह से '81 से आज तक शिक्षकों की बहाली नही हुई , नेट और पीएचड़ी की कतार लग गयी ,,,इधर गेस्ट .एड़ोक की तू ती बोल रही है साथ ही अवकाश प्राप्त करने की उम्र साठ से पैंसठ कर दी गयी ..समझ में नही आता हो क्या रहां है ? …
किन्तु, इस सब से सरकार ने देश का, समाज का क्या भला किया ?/ बच्चे परीक्षा देने जाते हैं ..एडमिट कार्ड नही आया है ..लौट जाओ का तानाशाही आदेश। बच्चे हताश निराश हमारा क्या दोष है !
बोर्ड का अंक प्रतियोगिता में जुटेगा , इंजीनियर बनने वाले कुछ खुश कुछ दुखी ; डाक्टरों को एम् डी एम् एस के लिए कोर्ट का आदेश। अपने अपने राज्य से सीट लो किन्तु जिस राज्य में सीट ही न हो। भाड़ में जाओ, जब तक उम्र है देते रहो परीक्षा /.. अब नया फरमान यूजीसी का --- महिलाओं को सीट इसलिए देता हूँ कि वे तनखा कम लेती हैं .... ये कौन सा तर्क है !.फिल्मो को देखो, जितनी गंदगियाँ है सब को नग्न कर दर्शकों के सामने परोसती है , और वाहवाही लूटती है करोड़ों की कमाई हो रही है .. कौन जाते वक़्त पैसे लेके जाता है , देह के कपडे तक उतार मिटटी में मिला देते हैं ... उफ़ ! क्या हो रहा है इस देश में // व्यवस्था रोज नए रंग ला रही कागजों में , पर समाधान के लिए कहीं कुछ नही । देश के युवाओं को मार कर , हताश निराश कर सरकार को क्या मिला ; जब सरकार अच्छी तरह जानती है ...ये ही भविष्य है मेरे भारत विशाल के ....पर भारत कहाँ ..देश कहाँ ... ?????
क्रमश;
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