ओहि वसन्तोत्सव में अहांक अदृश्य कर
अंगराग
लेपि गेल हमरा
चानन पीर जगाय गेल हमरा
अहाँक स्वप्निल आंगुरक सिहरन
अहंक अदृश्य मधुमय छुवन
समस्त तन में संगीत लिखि गेल
हमर समस्त मोन के
बांसुरी बनाय गेल
भय होइत अछि प्रभो !
ओहि संगीत के अहाँ बिसरि नहि जाय
मुरली उपेक्षित नहि राखि दी अहाँ .......
समग्र धरती सौंसे अकासक विस्तृति में
समा नहिओहि वसन्तोत्सव में अहांक अदृश्य कर
पओत दुःख हमर
आह !
प्राणक ई अप्रतिहत आकुल नाद !!!!!
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