करवा चौथ
बूढ़ी माँ
करवा चौथ के दिन निहार रही थी
बालकोनी से चुपचाप
सामने पार्क की चहल पहल
हंसी की फुलझड़ियाँ ठहाकों का
गर्म बाजार
मेहँदी रचाती अल्हड बहुएँ बेटियां
बूढी माँ अपनी सूनी हथेलियों को देखती रही
एक उसाँस उसकी छाती चीर निकलती रही
कभी हम भी नारी आंदोलन में रहते थे
पर माता पिता को पहले पूजते थे
बबुआ के पिता भी न जाने कहाँ चले जाते हैं
अवकाश प्राप्त का जीवन वह जी नही पाते हैं
वह कभी अपनी झुर्राती हथेलियों तो कभी
अपनी श्लथ अँगुलियों को निहारती है
एक इंतज़ार खत्म होता है
पति की आँखों में एक खालीपन
पत्नी की मेहँदी विहीन हथेलियों को देख
उसके सूने नयनो में बादल आ जाते हैं
उसकी हथेलियों को प्यार से चूमते --
लो तेरे हाथों में मैंने प्यार की मेहँदी रच दी
वे तो बच्चे हैं हमारे
जो कभी हम थे आज बच्चे हैं हमारे
पत्नी का सर पति के सीने पे लुढ़क जाता है
करवा चौथ का व्रत पूरा हो जाता है------
करवा चौथ के दिन निहार रही थी
बालकोनी से चुपचाप
सामने पार्क की चहल पहल
हंसी की फुलझड़ियाँ ठहाकों का
गर्म बाजार
मेहँदी रचाती अल्हड बहुएँ बेटियां
बूढी माँ अपनी सूनी हथेलियों को देखती रही
एक उसाँस उसकी छाती चीर निकलती रही
कभी हम भी नारी आंदोलन में रहते थे
पर माता पिता को पहले पूजते थे
बबुआ के पिता भी न जाने कहाँ चले जाते हैं
अवकाश प्राप्त का जीवन वह जी नही पाते हैं
वह कभी अपनी झुर्राती हथेलियों तो कभी
अपनी श्लथ अँगुलियों को निहारती है
एक इंतज़ार खत्म होता है
पति की आँखों में एक खालीपन
पत्नी की मेहँदी विहीन हथेलियों को देख
उसके सूने नयनो में बादल आ जाते हैं
उसकी हथेलियों को प्यार से चूमते --
लो तेरे हाथों में मैंने प्यार की मेहँदी रच दी
वे तो बच्चे हैं हमारे
जो कभी हम थे आज बच्चे हैं हमारे
पत्नी का सर पति के सीने पे लुढ़क जाता है
करवा चौथ का व्रत पूरा हो जाता है------